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और
दुःखों के परिहार के लिए, कर्मों को बढ़ाने वाले अभिप्रायादि को जितकर उत्तम सुख प्राप्त करें । (४९)
बाह्य संयोगों को नहीं बदला जा सकता है । यदि संयोगों को रोकना या बदलना सम्भव हो, तो विश्व ही अव्यवस्थित हो जाएँगा । (५०)
जो भी अनिष्ट प्राप्त हुआ है, उसका कारण पाप का उदय है । अनिष्ट, पापोदय से उत्पन्न है । इन पापों का परिवर्तन कैसे हो यही विचारणीय है । (५१)
कर्म विषयक महान ग्रन्थों में कर्मों का संक्रमण भी बताया गया है । (अर्थात् एक प्रकृति का कर्म दूसरी प्रकृति के कर्म में संक्रमित हो जाता है ) । हमारे जैसे जीवों में यह संक्रमण कैसे हो सकता है ? (५२)
पदार्थों के और मनुष्यों के स्वभाव से भी वेदनाएँ उत्पन्न होती है, तब क्या उनमें परिवर्तन सम्भव है ?। (५३)
दुनियाभर का परिवर्तन करना सम्भव नहीं है। विश्व भर में स्थित सबका परिवर्तन करना दुष्कर है, अपनी आत्मा में परिवर्तन करना अपेक्षया सुकर है । (५४)
तृतीय प्रस्ताव