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'आए हुए अनिष्ट के प्रतिकार के लिए मैं पूरा प्रयत्न करूँगा।' इस प्रकार विचार करने वाला जीव प्रतिभाव से युक्त होता है । (३१)
मतिज्ञान में जो दीर्घकालिकी संज्ञा है वह सुखदुःख के विविध आयाम बनकर अर्थघटन में रहती है। (३२)
. अल्प शब्दात्मक सूत्र से जैसे वृत्तिकार महर्षि बहे
अल्प शब्दात्मक सूत्र से जैसे वृत्तिकार महर्षि बड़े अर्थो वाली नई व्याख्या करते हैं । (३३)
उसी प्रकार कर्म से आतुर जीव जिस प्रकार विषय प्राप्त होते है उस प्रकार चित्त के भावों को विस्तार देता है और संसार में भ्रमण करता रहता है । (३४)
मानसिक संकल्प को अर्थ कहते है । अनेक प्रकार से अर्थ की रचना करते हुए जीव जिन-जिन भावों से युक्त होता है, उन भावों को प्रतिभाव जानना चाहिए। (३५)
चित्त में अनुकूलत्व की बुद्धि होती है, वैसे ही प्रतिकूलत्व की बुद्धि भी होती है। यह अनुकूल और प्रतिकूल बुद्धि अभिप्राय है । यह अभिप्राय विषय के संग से निर्मित होता है । (३६)
तृतीय प्रस्ताव