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इन्द्रियों के द्वारा किसी वस्तु के सभी पर्याय का ज्ञान नहीं होता । यदि ऐसा हो, तो केवलज्ञान में अतिव्याप्ति होगी । क्यूं कि केवलज्ञान में ही द्रव्यपर्यायसहित वस्तु का सम्पूर्ण ज्ञान होता है । (७)
इन्द्रियों से परोक्ष स्थित पदार्थों का ग्रहण सम्भव नहीं है । समीपस्थित और साक्षात् सम्पर्क में आए हुए पदार्थों का ही ग्रहण होता है । (८)
कार दुव्या में जितने गुण उपस्थित हो
द्रव्य में जितने गुण उपस्थित हो उतने का ही बोध होता है । जितने गुण हो उनसे कम गुणो का बोध हो सकता है, उनसे अधिक गुणो का बोध नहीं हो सकता । (९)
दीवार आदि जड़ सामग्री बोध करने में सर्वथा अक्षम है, क्योंकि ज्ञान, चेतना से ही उत्पन्न होता है और चेतना जीव में ही होती है । (१०)
शब्दों के अर्थ का संकेत श्रुतज्ञान से ही होता है । इस श्रुतज्ञान के साधन जन्मजात वातावरण, व्याकरण आदि होते हैं । (११)
जड़ श्रुतज्ञान के लिये योग्य नहीं होते क्योंकि वे ग्राहकता गुण से रहित होते हैं। मतिज्ञान और श्रुतज्ञान से इस प्रकार विषयग्रहण होता है । (१२)
तृतीय प्रस्ताव