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तृतीय प्रस्ताव
भाव्यमानता में तीन बातें समाविष्ट है । विषय का ग्रहण । अभिप्राय की योजना । का अर्थघटन विषय । (१)
ज्ञानावरणीयकर्म के क्षयोपक्षम से उत्पन्न मतिज्ञान और श्रुतज्ञान से क्रमशः अपने अपने विषय का बोध होता है । (२)
इन्द्रियों के द्वारा जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह मुख्य रूप से मतिज्ञान होता है । मतिज्ञान से वस्तु के आंशिक गुणधर्मों का बोध होता है । (३)
मतिज्ञान में त्वचा, जिह्वा, नासिका, नेत्र व कर्ण इन पाँचों इन्द्रियों से बोध होता है । निवृत्ति और करण रूप द्रव्येन्द्रिय से बोध होता है तथा लब्धि और उपयोग रूप भावेन्द्रिय से बोध होता है । ( ४ )
इन्द्रिय के द्वारा अपने विषय का जो ज्ञान होता है, उसे उपयोग कहते है । जैसे आँखो से रूप का ज्ञान होता है, स्पर्श रस आदि ( विषयों) का नहीं । (५)
जीव का चैतन्य रहने पर भी इन्द्रिय का स्वभाव है कि वह अपने विषयों से अन्य किसी विषय का ज्ञान नहीं कर पातीं । (६)
तृतीय प्रस्ताव
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