________________
संसार में अनादि आत्मा की ऐसी कोई अवस्था नहीं है, जहाँ यह भाव्यमान्यता न हो। (३७)
भाव्यमानता कारण है, संस्कार उससे उत्पन्न होते हैं । कारण होते हुए भी ये संस्कार भाव्यमानता को दृढ़ करते हैं । (३८)
भाव्यमान भाव यदि शुभ हो, तो उसका संस्कार भी शुभ ही होता है । ( ३९ )
शुभ भाव्यमानता और शुभ संस्कारों की उत्पत्ति ये दोनों दुष्ट कर्मों (अशुभ कर्मों) के निवारण के एकमात्र उपाय हैं । (४०)
यथाप्रवृत्तकरण से कर्म की मन्दता हो जाने पर यह क्रम जीव की योग्यता से सम्भावित है। (४१)
उत्तम निमित्तों के लाभ से भाव्यमानता उत्तमता को प्राप्त करती है, जैसे दूध से भरा पात्र दूध के कारण उत्तमता प्राप्त करता है । (४२)
दूसरा प्रस्ताव
३९