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यहाँ अनुपम आत्मा प्रतिभावादि से परे होकर में केवलज्ञान रूपी तेज के साथ, अपने मूलरूप से मोक्ष में प्रकाशित होता है । (३१)
मोक्ष जीव का स्वभाव है। संसार जीव का विभाव (विपरीत भाव) है। अनुकूलप्रतिकूल संवेदनों से प्रभावित होने की प्रक्रिया ही विभाव की दशा है, यह जानना चाहिए। (३२)
आत्मचेतना अनादिकाल से भाव्यमानता से संलग्न है । भाव्यमानता विषयों के द्वारा बनती है, विषयों में बनती है। यह विषयों की आसक्ति बढ़ाती है । (३३)
कोमल स्पर्शों से, स्वादिष्ट रसों से, उन्मत्त करनेवाली सुगन्धों से, दिव्य रूपों से, मधुर स्वरों से वह (रागरूप) भाव्यमानता होती है । (३४)
कठोर स्पर्श से, कड़वे स्वादों से, दुर्गन्धों से, क्रूर रूपों से, कठोर शब्दों से भी वह (द्वेषरूप) भाव्यमानता होती है । (३५)
क्रोध, मान, माया और लोभ रूप कषायों से प्रायः भाव्यमानता दिखाई देती है। (३६)
दूसरा प्रस्ताव
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