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प्रशस्ति
मेरे पितृ मुनीश्वर प्रसन्न हों, क्यों कि यह नया ग्रन्थ उन्हीं के नाम पर निर्मित हुआ है । (१)
स्पष्ट कथन करने वाला, सम्यक प्रेरणा देने वाला, मूलगामी चिन्तन से युक्त श्रीसंवेगरति ग्रन्थ मेरे पितमुनिवर गरु के समान है। (२)
और आसार संसार को त्यागकर न केवल खुद
असार संसार को त्यागकर न केवल खुदने दीक्षा धारण की । साथ साथ मुझे और मेरे भाई को भी दीक्षा का मार्ग दिया । (३)
अपने दोनों पुत्रो को श्रीरामचन्द्र सूरीश्वरजी म. का शिष्यपद प्रदान किया । आप निर्ग्रन्थशेखर है । आपने पुत्रो को अपना शिष्यत्व नहीं दिया । (४)
हमें पूरा अध्ययन कराया, और खुद कोइ सेवा स्वीकार नहीं की । मेघ पृथ्वी को देता ही है, वह कुछ लेता नहीं है । (५)
वैराग्यरतिनामक ग्रन्थ वाचकयश की कृति है । श्रीमान उमास्वाति वाचक निर्मित प्रशमरति नामक ग्रन्थ भी है । (६)
प्रशस्ति
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