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भगवान की मूर्ति का सौंदर्य भावपूर्वक देखकर कृतकृत्य बने । आन्तरिक आनन्द में मग्न होकर जिन भगवान का स्तवन करे । (६१)
भक्तिवान् होकर पूजा विधि करे उत्तम सामग्री रखें । अध्यात्म की उपलब्धि से अपनी आत्मा की परमात्मदशा पाने की याचना करें । (६२)
पंचकल्याणकों से पवित्र तीर्थक्षेत्र और अन्य तीर्थों की भावपूर्वक यात्रा करके धन्य व्यक्ति अपनी आत्मा से कर्मरज को कम करता है । (६३)
सम्मेतशिखर, चम्पापुरी, काशी, गिरनार पर्वत, अयोध्या और पावापुरी की यात्रा करके मनको भावित करें । (६४)
शत्रुजय, तारंगाजी, पाटन, आबु, शंखेश्वर और प्रह्लादपुर की यात्रा गुणकारी होती है। (६५)
पृथ्वी के आधारभूत अन्य तीर्थों की पवित्र संगति से अपने आपको निर्मल करें । (६६)
चौथा प्रस्ताव