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उपमितिभवप्रपंचा कथा अपने प्रत्येक प्रस्ताव के द्वारा आत्मा का दारिद्र्य नाश करती है इस लिए उसे कल्पवृक्ष से अधिक मानी गई है । (२५)
अध्यात्म-कल्पद्रुम ग्रन्थ के द्वारा तीन अकल्प्य फल मीलते हैं । तत्त्व का चिन्तन, ममता का विसर्जन, आत्मा का अनुराग । (२६)
जहाँ 'शान्तसुधारस' रूपी सतत वर्षा करने वाला मेघ है, वहाँ मन रूपी भूमि में सद्भाव रूपी मोर नाचते हैं । (२७)
धन और स्वजन के विस्तार में तथा शरीर में आसक्ति जिन्होंने छोड़ दी, उन्होंने निश्चित ही पवित्र 'भवभावना' ग्रन्थ को पी लिया है । (२८)
'योगशास्त्र' में बिन्दु में सागर स्थित प्रतीत होता है। यहाँ संक्षेप में सम्पूर्ण धार्मिक आचार प्रदर्शित किया गया है । (२९)
निश्चय व्यवहार के द्वारा धर्ममार्ग को प्रदर्शित करने वाला 'श्रीयोगशतक' सूर्य और चन्द्र से युक्त आकाश की तरह है । (३०)
चौथा प्रस्ताव