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आत्मा है । कर्म है और मैं कर्मों से बद्ध हूँ । कर्मों के फलों का भोग मैं करता हूँ और कर्मनाश में भी समर्थ हूँ (१९)
कर्मनाश का साधक धर्म है, अतः मेरा कर्मों से मोक्ष सम्भवित है। इस ज्ञान को पाकर ही कर्मों को रोका जाता है। (२०)
आगम और उनकी वृत्तियाँ मुख्यरूप से ज्ञानदायक है। उन्हें पढ़ने की योग्यता महाव्रतसाधक श्रमण में ही होती है । (२१)
उत्तम शास्त्रों के अभ्यासी, परमार्थ को जानने वाले इन महाव्रतियों ने स्वाध्याय में उपयोगी अनेक ग्रन्थों की रचना की है । (२२)
संसार के तीव्र राग का उच्छेद करने वाली संवेगरंगशाला (नामक ग्रन्थ) की शक्ति का कौन वर्णन कर सकता है। (२३)
समरादित्य की कथा में जिसे रस का अनुभव हुआ है वह क्लेश के आवेशों से सर्वथा मुक्त बना है । (२४)
चौथा प्रस्ताव
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