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स्वाध्याय, सदाचार और सत्संग, इन तीनों में चित्त का समर्पित प्रयत्न भावशुद्धि करता है । (१३)
सूत्र, अर्थ और उसके नए नए तात्पर्य को पढ़ता हुआ जीव तीर्थस्पर्शना समान लाभ पाकर आत्मा की निर्मलता को प्राप्त करता है। (१४)
सूत्रो को ऊँचे स्वर से पढ़ते हुए कंठस्थ करने का आनन्द सूत्रों में एकाग्रता लाता है तथा जिल्ला को पवित्र करता है। (१५)
अरिहन्त निरूपित अर्थों में चित्त की धारणा को लगाकर अभ्यास करना परम आह्लादकारी तथा श्रद्धाकारी है । (१६)
तात्पर्य ज्ञान होने से ही अप्रतिम बोध होता है, जो मनोयोग की पद्धति में स्रोत के विपरीत जाने की गति प्रदान करता है। (१७)
जीव छह कारकों के द्वारा आत्मा की दशा का विचार करते हुए मिथ्यात्व मोहनीय के कर्मो को मन्द करने में सफल होता है । (१८)
चौथा प्रस्ताव
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