________________ 52 मङ्गलवादसंग्रह ज्ञान सम्भव नहीं है दूसरी बात यह है कि वादी को उनमें सकष्टकत्व (कर्ता होने) का निश्चय होते से सन्देह के लिए कोई अवसर नही है / यह नही कह सकते कि वादियों के दोनों अनुमान तुल्य बलवाले होने से मध्यस्थ को सकर्टकत्व का संशय सम्भव है क्योंकि मध्यस्थ को संशय तब होता है जब दोनों विरोधी अनुमान प्रस्तुत होते हैं, अतः दोनों अनुमानों से संशय और मध्यस्थ के प्रश्न के बाद अनुमान इस प्रकार से परस्पर श्रयता दोष होता है। दूसरी बात यह है कि घडे के विषय में भी संशया और विवाद सम्भव है जबकि वहाँ विशेष कारण का प्रत्यक्ष न हो। क्षिति आदि सकर्टक है या नही इस प्रकार से प्रत्येक के विषय में संशय होने पर विवादस्पद के रूप में अनुमान करने पर दूसरे ही पदार्थ को सिद्धि होने की आपत्ति है / विचाराङ्ग संशय यहाँ क्षिति सकर्टका नवा इत्यादि