________________
boy.pm5 2nd proof
४२. योनि
प्रतिक्रमण में हम बोलते हैं सात लाख पृथ्वीकाय । इसमें सात लाख की संख्या पृथ्वीकाय की योनि के लिए है । सभी जीवों की मिलाकर गिने तो चौर्याशीलाख योनि होती है ।
योनि का अर्थ है उत्पन्न होने की जगह । अलग-अलग तरह से जीव उत्पन्न होते है । हर गति में जितने प्रकार से उत्पन्न होने की जगह हो उतने प्रमाण से योनि की संख्या निश्चित है । पृथ्वीकाय = ७ लाख । बेइन्द्रिय
= २ लाख अप्काय = ७ लाख | तेइन्द्रिय
२ लाख तेउकाय = ७ लाख चउरिन्द्रिय
२ लाख वायुकाय ___ - ७ लाख देव।
४ लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय = १० लाख नारकी
- ४ लाख साधारण वनस्पतिकाय = १४ लाख तिर्यंचपंचेन्द्रिय - ४ लाख
___= १४ लाख योनि की कुल संख्या ८४ लाख की है और जीव तो अनन्त है तो फिर योनि कम और जीव ज्यादा, ऐसा हो सकता है? ये प्रश्न होगा ही । उत्तर सरल है। एक स्कूल में हर साल हजारों विद्यार्थी पढ़ते है । एक विद्यार्थी को एक स्कूल, दूसरे विद्यार्थी को दूसरी स्कूल, ऐसा नहीं होता । सभी के बीच एक ही स्कूल गिनती में आती है। इस प्रकार जन्म लेने वाले जीव क्यों न अनन्त हो परन्तु जन्म देने के लिए स्थान तो ८४ लाख ही है । हमारी आत्मा इस ८४ लाख योनि में बहुतबार जन्म ले चुकी है। अगर हम इन ८४ लाख योनि से बहार आ जाए तो हम मोक्ष में जा सकते हैं । योनि के बारे में कुछ बातें समझनी जरुरी है। + एकेन्द्रिय जीवों की योनि की रचना कुदरती है। ये जीव किसी भी स्थान
पर जन्म ले सकते है। एकेन्द्रिय जीवों को जन्म लेने के लिए मा-बाप की जरुर नहीं होती । विकलेन्द्रिय जीवों में योनि किस प्रकार होती है ? विकलेन्द्रिय जीव कोई
पानी में जन्म लेते है, कोई काष्ठ में पैदा होते है तो कोई कचरे में भी उत्पन्न हो जाते है। कोकरोच जैसे जीव इण्डे जैसे कोयले से जन्म लेते है। जीव जिस जगह पर जन्म लेते है वह जगह उनकी योनि है । ऐसा समझ लेना । पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य, गर्भज और संमूर्छिम रूप में जन्म लेते हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यंच में - जरायुज, अण्डज और पोतज ये तीनों प्रकार के जीव माता की कुक्षि से जन्म लेकर बाद में बहार आते है। इसलिए उनके लिए माता की कुक्षि ही योनि गिनी जाती है। हमारे जैसे मनुष्य के लिए हमारी माता की कुक्षि यही योनि गिनी जाती है। जन्म के तीन प्रकार है । संमूर्छन, गर्भज, और उपपात । मा-बाप बिना का जन्म यानी संमूर्छन । संमूर्छिम मनुष्य और संमछिम तिर्यंच का जन्म संमूर्छन जैसा ही है। उसकी कोई निश्चित योनि नहीं होती । गन्दकी या गिलेपन जैसे निमित्तों से संमूर्छन का जन्म हो जाता है ।
देवताओं और नारकीओं का जन्म उपपात से होता है । (१) देव, अपने लिए योग्य हो ऐसी शय्या में नवजात शरीर के रूप में अवतार
लेता है। एक अन्तर्मुहूर्त में तो नवयुवान बन जाता है। मा-बाप बिना का जन्म है अतः गर्भज नहीं गिना जाता है। गन्दकी जैसा कोई निमित्त नहीं है अतः संमूर्छन नही कहलाते । देवताओं के उपपात की योनि शय्या
| मनुष्य
(२)
नारकी, नरकगति में छोटी-सी मटकी में जन्म लेते है। उनका शरीर बड़ा होने लगता है। छोटी-सी मटकी में = कुम्भी में उनका शरीर दब के रहता है । परमाधामी उनके शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर बहार निकालते है। शरीर पारे की तरह जुड़ जाता है। इस प्रकार नारकी के उपपात की योनि कुम्भी है।
बालक के जीवविचार . ७९
८० • बालक के जीवविचार