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४३. सिद्ध
४४. उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी
भरत, ऐरावत और महाविदेह ये तीन कर्मभूमि है। इसमें महाविदेह के अलावा दो कर्मभूमि में, भरत में और ऐरावत में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी नामकी कालव्यवस्था होती है । पल्योपम तो हमने सीख लिया है ।
१० कोडाकोडी पल्योपम = १ सागरोपम १० कोडाकोडी सागरोपम = १ उत्सर्पिणी या १ अवसर्पिणी उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के छह भाग है।
अवसर्पिणी के छह भाग । उत्सर्पिणी के छह भाग पहला आरा-४ कोडाकोडी सागरोपम | पहला आरा-२१ हजार वरस दूसरा आरा-३ कोडाकोडी सागरोपम | दूसरा आरा-२१ हजार वरस तीसरा आरा-२ कोडाकोडी सागरोपम | तीसरा आरा-१ कोडाकोडी सागरोपम चोथा आरा-१ कोडाकोडी सागरोपम | (४२ हजार वरस न्यून) (४२ हजार वरस न्यून)
चौथा आरा-२ कोडाकोडी सागरोपम पाँचवा आरा-२१ हजार वर्ष । | पाँचवा आरा-३ कोडाकोडी सागरोपम छठ्ठा आरा-२१ हजार वर्ष
छठ्ठा आरा-४ कोडाकोडी सागरोपम छह भाग को छह आरा कहते हैं, छह आरे के छह नाम है । पहला आरा-सुषम सुषम चोथा आरा-दुषम सुषम दूसरा आरा-सुषम
पाँचवा आरा-दु:षम तीसरा आरा-सुषम दुषम छठ्ठा आरा-दुःषम दुःषम याद रख लो
जब कर्मभूमि में चोथा आरा चलता है तब मोक्ष में जा सकते हैं ।
महाविदेह क्षेत्र में सदाकाल के लिए चोथे आरे जैसी स्थिति चलती है। इसलिए वहाँ से सदाकाल मोक्ष में जा सकते हैं ।
+ संसारी जीवों के ५६३ भेद हम समझ चूके है । हम इन ५६३ भेद में
ही साप सीडी की तरह फसे हुए हैं । ५६३ भेदों में से बहार निकलकर मोक्ष में पहुँच जाए तो हमारी आत्मा सिद्ध हो जाती है। मोक्ष में मरने की चिन्ता नही होती । मोक्ष में भूख प्यास या कोई रोग नहीं है । मोक्ष में शरीर नहीं है । श्वास लेने की जरूर नही है। मोक्ष
में रोटी, कपड़ा या मकान की कोई चिन्ता नहीं है । + मोक्ष में आत्मा अवर्णनीय सुख को पाती है। मोक्ष में आत्मा पूरे विश्व
को देख सकती है । मोक्ष में आत्मा सम्पूर्ण भूतकाल को देख सकती है। मोक्ष में आत्मा सम्पूर्ण भविष्यकाल को देख सकती है। मोक्ष में आत्मा वर्तमान समय की हर परिस्थिति को देख सकती है। मोक्ष में बिना आँखों से देख सकते हैं । बिना कानों से सुन सकते है। + मोक्ष में गुस्सा नहीं आता । मोक्ष में कंटाला नहीं आता । मोक्ष में थकान
नहीं लगती। सफर से थका हुआ व्यक्ति बिस्तर में लम्बा होकर सो जाता है तब कुछ भी काम किये बिना भी शान्ति का अनुभव करता है। उसी प्रकार संसार परिभ्रमण से थकी हुई आत्मा, मोक्ष में पहुँचने के बाद कोई भी काम किये बिना अनहद आनन्द को पाती है। मैं जैन हूँ, मुझे मोक्ष में जाना है । जीवों के ५६३ भेद मेरी आत्मा को बाँध रहे हैं वो मुझे पसन्द नही है। मेरे भगवान मोक्ष में गये है। मेरे गुरु मोक्ष में जाने की साधना करते है । मैं भी मोक्ष में जाने का लक्ष्य रखूगा । आज मैं संसारी आत्मा हूँ। भविष्य में मुझे सिद्ध आत्मा यानी मुक्त आत्मा बनना है।
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बालक के जीवविचार .८१
८२ • बालक के जीवविचार