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४१. प्राण
जिस शक्ति से जीव जीते हैं उस शक्ति को प्राण कहते हैं । पाँच इन्द्रिय = पाँच प्राण श्वासोश्वास = छट्ठा प्राण आयुष्य = सातवाँ प्राण कायबल = आठवाँ प्राण वचनबल = नवमाँ प्राण मनबल = दशवाँ प्राण ये दस प्राण है । इन दस प्राणों में१. एकेन्द्रिय के चार प्राण होते है । १. स्पर्शनेन्द्रिय २. कायबल ३. श्वासोश्वास ४. आयुष्य २. बेइन्द्रिय जीवों के छह प्राण होते हैं । १. स्पर्शनेन्द्रिय २. रसनेन्द्रिय ३. कायबल ४. वचनबल ५. श्वासोश्वास ६. आयुष्य । ३. तेइन्द्रिय जीवों के सात प्राण होते है। १. स्पर्शनेन्द्रिय २. रसनेन्द्रिय ३ घ्राणेन्द्रिय ४. कायबल ५. वचनबल ६. श्वासोश्वास ७. आयुष्य । ४. चउरिन्द्रिय जीवों के आठ प्राण होते है। १. स्पर्शनेन्द्रिय २. रसनेन्द्रिय ३. घ्राणेन्द्रिय ४. चक्षुरिन्द्रिय ५. कायबल ६. वचनबल ७. श्वासोश्वास ८. आयुष्य ५. असंज्ञी पंचेन्द्रिय को नव प्राण होते हैं । १. स्पर्शनेन्द्रिय २. रसनेन्द्रिय ३. घ्राणेन्द्रिय ४. चक्षुरिन्द्रिय ५. श्रोत्रेन्द्रिय ६. कायबल ७. वचनबल ८. श्वासोश्वास ९. आयुष्य ६. संज्ञी पंचेन्द्रिय को दश प्राण होते हैं। १. स्पर्शनेन्द्रिय २. रसनेन्द्रिय ३. घ्राणेन्द्रिय ४. चक्षुरिन्द्रिय ५. श्रोतेन्द्रिय
६. कायबल ७. वचनबल ८. श्वासोश्वास ९. आयुष्य १०. मन याद रखो :
१. जिनके जितने प्राण कहे गये है, उन प्राणों से वियोग होना ही उन जीवों का मरण कहलाता है। मृत्यु का मतलब है प्राणों का वियोग । अर्थात् प्राणों से आत्मा का वियोग होना ही मरण है।
२. असंज्ञी पंचेन्द्रिय में संमूर्छिम मनुष्य और संमूर्छिम तिर्यंच का समावेश होता है। + असंज्ञी पंचेन्द्रिय
सुख मिले तो खुश होते हैं और दु:ख मिले तो नाराज होते हैं । परन्तु सुख प्राप्त करने के लिए और दुःख टालने के लिए उपाय नहीं सोच सकते । + संज्ञी पंचेन्द्रिय
सुख मिले तो खुश होते हैं और दुःख मिले तो नाराज होते हैं । वो सुख प्राप्त करने के लिए और दुःख दूर करने के लिए उपाय सोच सकते हैं ।
संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव में गर्भज मनुष्य, गर्भज तिर्यंच, देव और नारकी का समावेश होता है।
दूसरी व्यक्ति में दश प्राण है, उसे हम देख सकते हैं। दूसरी व्यक्ति के दश प्राणों में से अगर एक भी प्राण को हमारे हाथों से ठेस पहुँचे तो विराधना का पाप लगता है।
प्राण द्वारा ही वह आत्मा जी सकती है।
प्राण को नुकशान पहुँचे तो उसका जीवन बिगड जाता है। मैं जैन हैं। मेरे हाथों से दूसरे के प्राणों को नुकशान पहुँचे ऐसा कोई कार्य नहीं करूंगा।
बालक के जीवविचार • ७७
७८ . बालक के जीवविचार