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एक करोड़ पल्योपम
दस कोडाकोडी पल्योपम
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एक करोड़ पल्योपम एक कोडा कोडी पल्योपम
एक सागरोपम
एक करोड़ सागरोपम १० कोडाकोडी सागरोपम
एक करोड़ एक सागरोपम कोडाकोडी सागरोपम १ अवसर्पिणी या १ उत्सर्पिणी।
इस पल्योपम और सागरोपम की भाषा में हमको कुछ जीवों का आयुष्य समझना है ।
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पृथ्वीकाय का आयुष्य २२००० वरस का है । अप्काय का आयुष्य ७००० वरस का है ।
ते काय का आयुष्य ३ दिन का है।
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वायुकाय का आयुष्य ३००० वरस का है । साधारण वनस्पतिकाय का आयुष्य १ अन्तर्मुहूर्त का है । प्रत्येक वनस्पतिकाय का आयुष्य १००० वरस का है । बेइन्द्रिय का आयुष्य १२ वरस का है ।
तेइन्द्रिय का आयुष्य ४९ दिन का है । चउरिन्द्रिय का आयुष्य ६ माह का है । पंचेन्द्रिय मनुष्य गर्भज का आयुष्य ३ पल्योपम का है । पंचेन्द्रिय मनुष्य संमूर्छिम का आयुष्य १ अन्तर्मुहूर्त का है ।
पंचेन्द्रिय देव का आयुष्य ३३ सागरोपम है ।
पंचेन्द्रिय तिर्यंच गर्भज का आयुष्य ३ पल्योपम है ।
पंचेन्द्रिय तिर्यंच संमूर्छिम का आयुष्य १ करोड पूर्व वरस का है । पंचेन्द्रिय नारकी का आयुष्य ३३ सागरोपम है ।
बालक के जीवविचार • ७५
४०. स्वकाय स्थिति
जो जीव जिस गति में हो उसी ही गति में वह जीव जन्म ले तो कितने जन्म तक ऐसा हो सकता है ? इस प्रश्न का जवाब स्वकाय स्थिति द्वारा मिलता है। एक जीव अलग-अलग गति में जन्म लेता रहे तो वह स्वकाय स्थिति नहीं है। एक जीव, एक ही गति में जन्म लेता है और उसी ही भव में जन्म लेता है और वही जन्म बार-बार लेता है तब स्वकाय स्थिति बनती है। पृथ्वीकाय की स्वकाय स्थिति असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी है ।
अप्काय की स्वकाय स्थिति असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी है । तेउकाय की स्वकाय स्थिति असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी है । वायुकाय की स्वकाय स्थिति असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी है । प्रत्येक वनस्पतिकाय की स्वकाय स्थिति असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी है ।
साधारण वनस्पतिकाय का स्वकाय स्थिति अनंत उत्सर्पिणी अवसर्पिणी
है ।
बेइन्द्रिय की स्वकाय स्थिति संख्यात वरस है । तेइन्द्रिय की स्वकाय स्थिति संख्याता वरस है । चउरिन्द्रिय की स्वकाय स्थिति संख्याता वरस है ।
पंचेन्द्रिय मनुष्य गर्भज की स्वकाय स्थिति सात से आठ भव है । पंचेन्द्रिय मनुष्य संमूर्छिम की स्वकाय स्थिति सात भव है । पंचेन्द्रिय तिर्यंच गर्भज की स्वकाय स्थिति सात से आठ भव है । पंचेन्द्रिय तिर्यंच संमूर्छिम की स्वकाय स्थिति सात से आठ भव है । याद रखो :
देव और नारकी मरकर फिर से अपनी ही गति में कभी जन्म नहीं लेते। यानी देव मरकर वापिस देवगति में जन्म नहीं लेता और नारकी मरकर वापिस नरकगति में जन्म नहीं लेता । इसलिए उनकी स्वकायस्थिति नहीं होती ।
७६ • बालक के जीवविचार