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९. ते काय
तेजस्काय, अग्निकाय, तेउकाय इन तीनों का एक ही अर्थ हैं, आग । आग की चिनगारी भी होती है, आग की ज्वाला भी होती है । लाइटर के अन्दर से जो चमकारा निकलता है वह चिनगारी । माचिस की सली पर जल रहा है वह चिनगारी ।
स्टव में या भट्ठी में जो बड़ी-बड़ी लपट होती है वह ज्वाला ।
आग का स्पर्श गरम है। आग का उपयोग बहुत प्रकार से होता है । रसोई बनाने के लिए आग की जरुर होती है । अन्धेरे में उजाला करने के लिए आग की जरुर होती है। हर प्रकार के लाइट कनेक्शन के लिए आग की (-बिजली की) जरुर होती है।
यह आग स्थावर एकेन्द्रिय जीव है। आग को हाथ पैर नहीं होते । आग को पाँच इन्द्रिय नहीं होती। आग को एक ही इन्द्रिय होती है, स्पर्शनेन्द्रिय ।
आग की अनुभव करने की शक्ति केवल स्पर्श तक ही मर्यादित है । आग स्थावर है। उसमें अपने आप चलने की शक्ति नहीं होती। उसका हलनचलन दिखता है परन्तु स्वयं की मर्जी से वह हलन चलन नहीं कर सकती । एक जगह से दूसरी जगह जाने में वह पराधीन है ।
आग तीन दिन तक जीने की क्षमता रखती है। हर कोई आग तीन दिन नहीं जी सकती। आग की सबसे ज्यादा जीवनशक्ति तीन दिन की है। आग तीन दिन के बाद या, जब भी इसका आयुष्य पूरा हो तब मर जाती है और उसकी जगह आग के नये जीव ले लेते हैं। इससे वर्षों तक आग बूझती नहीं है ऐसा भी देखने मिलता है ।
ऐसे आग के जीव को हम पीड़ा न पहुँचाए तो हम सच्चे जैन है। आग की जीने की शक्ति और अनुभव करने की शक्ति को हमारे हाथ से नुकशानी न हो उसका खयाल रखना चाहिये ।
हमको कोई परेशान करे तो हमको अच्छा नहीं लगता उसी प्रकार आग को भी कोई परेशान करे तो उसे अच्छा नहीं लगता ।
आग लाचार है। उसके पास बोलने की ताकात नहीं है ।
बालक के जीवविचार • १३
हमें समझकर आग को पीड़ा न हो वैसे रहना चाहिये ।
आग जलती हो तब उसमें कचरा डालने से, कागज डालने से, पानी डालने से आग के जीवों को पीड़ा होती है ।
लाइट की, पंखे की. टी.वी. की, कॉम्प्युटर की स्वीच ऑन और ऑफ (चालु - बन्द) करते रहने से उसमें प्रवाहित बिजली रुप आग के जीवों को पीड़ा होती है। आग लगाने से पटाखें फोडने से, मॉमबत्ती जलाने से, दीपक लगाने से आग को जनम मिलता है और कुछ समय बाद जब ये आग बुझ जाती है तब आग मर जाती है। आग लगाना, पटाखे फोड़ना, मोमबत्ती या दीपक करना उससे "आग के जीव मर जाते हैं" उसका पाप लगता है। रसोइ ठण्डी हो जाए, चाय या दूध ठण्डा लगे तब उसे गरम करने के लिए हम उसे गैस पर रखते हैं तो उससे आग के जीवों को तो पीड़ा ही होती है। गैस चालु करे या बटन दबाकर लाइट, पंखा, टी.वी. रेडियो मशीन, कॉम्प्युटर, कॅल्क्युलेटर चालु करे या पेट्रोल-डीझल से चलने वाला कोई भी साधन चालु करे, इन सारी प्रवृत्ति में अग्नि का जन्म भी होता है और अग्नि का मरण भी होता है । इसलिए अग्नि के मरण का पाप लगता है।
आग का, बिजली का उपयोग हम बन्द नहीं कर सकते इसलिए आग के जीवों को पीड़ा देना चालु ही रहता है। आग और बिजली का उपयोग जितना कम होगा उतना हमको पाप भी कम लगेगा। जैन पाप ज्यादा नहीं करता। जैन पाप कम करता है। जैन जानबुझकर पाप नहीं करता। जैन लाचारी से पाप करता है ।
जैन पाप करके खुश नहीं होता। जैन पाप करना पड़ा उसका पश्चात्ताप करता है । मैं जैन हूँ। आग के जीवों को पीड़ा न देने के लिए मुझे जागृत होना है। मैं आग और बिजली वाले साधनों को कम से कम वापरुँगा ।
आग और बिजली में तेउकाय के जीव होते है। उसकी मैं ज्यादा से ज्यादा दया पालूँगा ।
तेउकाय के जीवों को कम से कम तकलीफ हो उसके लिये मैं जागृत रहूँगा ।
१४• बालक के जीवविचार