SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ boy.pm5 2nd proof १०. वायुकाय हवा, पवन, आंधी, चक्रवात । वायुकाय के ये स्वरुप है। खिडकी से हवा आती है। दरवाजे पर खड़े रहते हैं तो पवन मिलने आ जाता है। घर के पर्दे और कागज उडने लगते हैं, दिया बूझ जाता है और पानी ठण्डा होने लगता है। हवा का यह पराक्रम है। हवा धीमे-धीमे भी चलती है। हवा जोर से भी चलती है। हवा तुफान भी लाती है। यह हवा स्थावर-एकेन्द्रिय जीव है । हवा को हाथ पैर नहीं होते । हवा को पाँच इन्द्रिय नहीं होती । हवा को एक ही इन्द्रिय होती है, स्पर्शनेन्द्रिय। हवा की अनुभव करने की शक्ति केवल स्पर्श तक ही मर्यादित है। हवा स्थावर है । इसमें स्वयं चलने की शक्ति नहीं होती । हवा में वजन न होने से वह चारों तरफ चलती हुइ दिखाई देती है। वह अपनी मर्जी से आना जाना नहीं करती । चलने के बाबजूद भी वह अपना दुःख दूर करने के लिए चल नहीं सकती। ऐसे हवा स्थावर जीव है । हवा ३,००० वर्ष तक जीने की क्षमता रखती है। हर कोई हवा ३,००० वर्ष तक जीने की क्षमता नहीं रखती । हवा की सबसे ज्यादा जीवन शक्ति ३००० वर्ष की होती है। ऐसी हवा को हम पीड़ा न पहुँचाए तो हम सच्चे जैन हैं। हवा की जीने की और अनुभव पाने की शक्ति को हमारे हाथों से नुकशानी न हो उसका खयाल रखना चाहिये । हमको कोई परेशान करे तो हमको अच्छा नहीं लगता उसी तरह हवा को भी कोई परेशान करे तो अच्छा नहीं लगता । हवा लाचार है, उसके पास बोलने की शक्ति नहीं । हमें समझकर ही हवा को पीड़ा न हो उस तरह रहना चाहिए। हम श्वास के बिना जी नहीं सकते । श्वास में हम हवा को ही लेते हैं। श्वास में आई हुई हवा को प्राणवायु कहते हैं । हमें दिखाई दे रही दुनिया में प्राणवायु रुप हवा सब जगह रहती है। पंखा चालु करे, हाथ से पंखा हिलाए, कपड़े से, कागज से या पुढे से हवा लेते हैं उस समय हमे हवा का अनुभव होता है । पंखा, कपड़ा, कागज या पुठ्ठा जोर से गति करता है उसके कारण स्थिर रुप में रही हवा को पीड़ा होती है। ___ मुँह से फूंक मारना, सीटी मारना, आवाज लगाना, चिल्लाना, उसके कारण स्थिर रुप में रही हवा को पीड़ा होती है। जहाँ हवा आती हो वहाँ अतिशय गरम पानी, रसोई या बर्तन को रखने से हवा के जीवों को गरमी की पीड़ा भुगतनी पड़ती है। हम नाचे, कूदे, भागे, जोर से श्वास ले उसके कारण हवा के जीवों को पीड़ा भुगतनी पड़ती है । गिले कपड़े को झटकने से, दोरी पर सूकाए हुए कपड़े की फडफड आवाज से, हवा के जीवों को पीड़ा होती है। किसी वस्तु को दूर फेंके, ऊपर से नीचे गिराये, ऊपर तक उछाले तो हवा के जीवों को पीड़ा भुगतनी पड़ती है । हवा सर्वव्यापी होने के कारण उसे बार-बार पीड़ा होती ही रहती है । हवा को - वायुकाय को हमारे हाथ से पीड़ा न हो उसके लिए बराबर सावधान होना पड़ेगा। हवा के बिना हम जी नहीं सकते । हवा का उपयोग हम करते ही रहेंगे। हवा का उपयोग कम होगा तो हवा को पीड़ा भी कम भुगतनी पड़ेगी । हम हवा को पीड़ा कम देंगे तो पाप भी कम होगा ।। मैं जैन हूँ, वायुकाय के जीवों को पीड़ा न हो उसके लिए मुझे जागृत होना है। मैं हवा के शोख को कम करूँ तो मेरे लिए एक अच्छा सद्गुण बना रहेगा । वायुकाय के जीवों की ज्यादा से ज्यादा दया पालने की मेरी भावना है । मैं इसके लिए जागृत रहूँगा ।। बालक के जीवविचार • १५ १६ • बालक के जीवविचार
SR No.009505
Book TitleBalak ke Jivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamrativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy