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________________ आ पुस्तक वांचवाची घणुं नरक विशे जाणवा मळ्युं । केवी रीत पाप करी छीओ तथा अक अंक पापथी कैटलुं नरकखुष बंधाय छे ते जाणी अनाथी (पापथी) दूर रहेवा चोरी न करवी, जूटुं न बोलवं तेवं मनमां नक्की कर्तुं । रात्रिभोजन नरकनुं पहेलुं ज द्वार छे । माटे तेनी त्याग कर्यो अने मारी नानी बेबी मंदबुद्धिनी छेतेने पण रोज चौविहार तथा नवकारशी करावं धुं । नास्कीना दुःखो सांभळी कंपी जवाय छे। आ पुस्तकथी मने घणुं ज ज्ञान मळ् छे । हंसाबेन भरतकुमार (१३ मी खेतवाडी) "हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार" आ पुस्तकथी अनुभव थयो के हुं पण संयमनो रस्तो अपनायुं । अपनाववा जेवो छे। नरकमां बहु दुःख अने दुःख सिवाय कशुं नथी। आंखना पलकारा जेटलं पण सुख नथी । ओटले तप तपस्या संयम लेवा जेवुं छे, अने चोरी, जूठु, हिंसा बधुं छोडवुं जोइओ अने ब्रह्मचर्यनुं पालन करयुं जोइओ । संसार असार छे । दुःखदायी छे । अनाथी नरकमा दुःख वधारे छे । ललीताबेन कान्तिलाल (बालाराम भवन) आ पुस्तक वांचता नरक अमने साक्षात स्वरूप देखाइ गएं । आ पुस्तक तो अमने डरावी नांवे छे। अमने आ पुस्तकथी केटलं ज्ञान मधुं छे. अमने खबर पड़े छे के शुं स्वावानुं, पीवानुं, शुं नथी खावानुं, शुं नथी पीवानुं, शुं मनवी करवानुं, शुं नधी करवानुं, शुं मन, वचन अने कायाथी करवानुं अ खबर पडे छे. अमे आ पण खबर पड़ी के नरकमां कैटलं दुःख है, जैना माटे अमने नरक नथी ज्युं । दीलिपभाई जैन (बालाराम भवन) इस पुस्तक से हमें नरक का स्पष्ट वर्णन सचित्र मालूम चला है इस भव में पाप करने से हमें कई जन्मों तक दुःख सहन करने पडते है । नरक में जिस-जिस तरह की पीडा भोगनी पडती है । वह इस पुस्तक से मालूम चलता है। गर्भपात, रात्रिभोजन, परस्त्रीगमन भयंकर महापाप है । इस पुस्तक को पढ़कर ऐसा लगता है की संसार में कुछ नहीं है। जितने हो सके उतने पाप कम करने चाहिये। जीवों को बचाना चाहिये | दान-पुण्य करना चाहिये । बहुत अच्छी पुस्तक है । इससे जितना ज्ञान मिले वह कम है। मिच्छामि टुक्कडम् । हे प्रभु! मुझे नरक नहीं जाना है !!! (74) आ पुस्तकनी परीक्षा आपी अमने अधिक अनुभवो थया । अमने खबर पडी के अमे अमारा जीवनमां केटला पाप कर्यां छे ? अने केटला पाप करवानां छे ? अमने नरकमां जवाथी शुं थाय ते खबर पढी । आ पुस्तकथी अधिक खबर थइ है। अमने अमारं भविष्य खबर थइ गयुं छे । मने आ पुस्तकमांधी बहु ज्ञान प्राप्त थयुं आ पुस्तकधी मने नरकनुं बधुं खबर पढी गयं । नरकमां क्या जीवो है ? नरकथी छूटवानो उपाय | नरकने चार दरवाजा आदि अमने खबर पडी । अटले हुं आ भवमां संसारमा न रहीने, पाप न करीने संयम लइने सारी आराधना करीने मोक्षे पहोंचवानो प्रयत्न करीश. ये पुस्तक पढके मुझे काफी पापों के बारे में और उसका फल कितना खतरनाक और भयानक होता है, उसका पता चला है दृष्टांत के साथ बात अच्छी तरह से स्पष्ट भी होती है और पढने में रस रहता है । ये पुस्तक पढते समय अपनी आत्मा के प्रति हम जागृत हो जाते है और पाप करते वक्त भी अक बार तो उसका परिणाम आंखो के सामने आ जाता है। ये पुस्तक पढने से पाप में रस नहीं होता। पाप करते वक्त भी हमेशा जागृत रहते हैं। पाप करते समय नरक से डर तो लगता ही है । लि. समता महेन्द्र जैन (वालकेश्वर) आ पुस्तक वांचतानी साथै ज आत्माने थयुं के केवां केवां पाप करवाची नरक गति अने तेनां दुःखी भोगववा पडशे ? तैनाथी कंइक आत्मा डरी गयो छे अने निश्वय करवी पडथों के गर्भहत्या, आत्महत्या, सात महाव्यसननो त्याग करवा जेवो ज छे अने तीर्थंकरोओ जे उपकार आपणा उपर कर्यो छे ते कांइ जन्म द्वारा ऋण चूकवी शकाय ओम नथी । दुर्गतिमांथी आ आत्माने बचाववा माटे लेखक महाराज साहेबने लाख लाख वंदन अने ऋण जे अमारा उपर रही गयुं छे ते माटे आगळ मार्गदर्शनमां अभिलाषी छीओ। आ पुस्तक वांचीने जाणवा मळ्युं के आपणे केटला पाप करीओ छीओ ? अने केवा विचारो करीओ छीओ ? अने आपणे क्या पाप त्यागी शकी ओ छीओ ? अने नरकमां जतां बची शकी ओ छीओ।
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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