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________________ नरक छे तेमां श्रद्धा बेठी । तेथी तेने निवारवा माटेना सहेलां उपायो जे हाथवगा छे, तेनुं पालन करवानुं नक्की कर्यु । जेम के रात्रिभोजननो त्याग, टी.वी.नो त्याग, अनंतकाय तथा बोळ अथाणानो त्याग, तप अने जपमां वधारे समय फाळववो, नवकारमंत्रनुं स्टण करवू, बीजाने दुःख पहोंचे तैवी प्रवृत्ति करवी नहीं। आ पुस्तक खूब ज उपयोगी पुरवार थयुं छे. जेम बने तेम हमेशा टूर रहेवू । वधु वधु तप करवा अने नव लाख नवकारवाळी गणवाथी मोक्ष प्राप्त थाय छ । तेथी नवकारो गणवा । माता, पिता, गुरुने सन्मान आप£ । कोइ पण दिवस क्रोध करवो नहिं । प्रभुभक्ति करवी तेथी सद्गति प्राप्त थइ शके छे। आ पुस्तक वांची मारामांघणो बदलाव मने देखाय छे। हं पण माता-पिताने प्रणाम कटु छु । नारकीने थता दुःख विशे जाण्यं अने था खरेखर ज आपणे अत्यारे भौतिक सुखमां राची छीओ। जे खरेखर तो आपणने अनादि कर्ममां दूंचवी नांवे छे । जो आपणा द्वारा अजाणतां पाप-कर्म थइ गयुं तो तेनी क्षमापना-प्रायश्चित करवू जोइथे। आपणे अमूल्य अवो मानव भव घणां पुण्यना उदयथी मळ्यो, अने तेमां पण जैन कुळमां जन्म मळ्यो। आ बधुं मळ्या छतां पण सौथी उत्तम उत्कृष्ट साधु महाराज मळ्या, तेथी परभव अने नरकनुं ज्ञान मळेल छे. आपणे नरकमाथी आवी तो गया छीओ, पण आ पुस्तक वांचता लागे छे के जो आपणे दररोजना पाप करवानुं ओर्छ नहीं करीअ तो आपणे तेनी आकरी सजा भोगववी पडशे । आपणे आपणा जीवनमां बे लक्ष्य राखवा जोइओ, अक तो आपणे करेलां पापनो नाश करवो अने बीजो नवा पाप ओछा करवा। आटली आकरी सजा अने छतां पण सुख तो आपणने क्षणभर ज मळे छे, ते आ नारकीनी पुस्तकनो सार मळे छे. आ पुस्तकना वांचनथी अमारा शरीरनां कवाडां खडा थइ गया। अरेराटीनी चीस नीकळी गइ अने विचार आटयो के आ भवमां तो घणां पाप कर्यां परंतु अवा केटलाये भव कर्या, कैटली योनीमांजीवे भवभ्रमण कर्यु, तो शुंथशे? जो वशुराजाने अकवार खोटुं बोलवाथी नरकनी वेदना आटली मोटी भोगववी पडी तो अमे तो केटली वार खोटुं बोल्या, केटली हिंसा करी, परिग्रह पण अटलोज। आजन्ममा १८पापस्थानक खूब ज सेटयां तो नारकी गतिमां शुं थशे? अहीं ठंडी सहन थती नथी गरमी सहन थती नथी, भूख, तरस, दुःख कंइ ज गमतुं नथी। "हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार" आ पुस्तक वांचीने अमने अवी जाण थइ के नरक कोइ पण कार्यथी प्राप्त थाय छे। नरकमां असा दुःख छ । जे दुःख आपणाथी सहन न थइ शके। अने नरक जवाना चार द्वार छे. १) रात्रिभोजन, २) परस्त्रीगमन, ३) बोळ अथाणु, ४) अनंतकायभक्षण साते नरकना आयुष्यनु नाम गोत्रादि कहेवाय छे त्यां आपणने हिंसादी पापनी सजा भयंकर मळे छे अने आपणने क्रोध थाय तो तेनुं फळ पण आपणने नरक मळे छे. लोभ करवाथी पण नरक ज प्राप्त थाय छे. त्यां आपणने कानमा खीला ठोके छे अने हिंसा, जूठ, चोरी, दुराचार, अभिमान, माया, कपट वगैरेथी नरक ज प्राप्त थाय छे। अहीं आपणे जेलमां आपेली सजा पण नथी जोइ शकता तो नरकमां तो तेनां करतां पण भयंकर सजा आपे छ। माटे आपणे अवा बधां पाप न करवा जेथी नरक प्राप्त थाय। ""हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार"... आपणे पूर्व भवमां करेलां अनेक दुष्ट अने भयंकर आचरणथी, क्रूरताथी हिंसाओ, जूठं बोला, चोरी, परस्त्रीगमन, धनप्राप्ति, तीव्र मूछथिी जीवनो वध (गर्भपात) करवाथी नरकना आयुष्यनो बंध करीने जीव नरकमां उत्पन्न थाय छ । नरक सात प्रकारनी होय छे । शर्कर प्रभा, वालुका प्रभा, पंक प्रभा, धूम प्रभा, तमः प्रभा, तमस्तम प्रभा नरकमां आपणे दुःख, कष्ट सहन करयुं पडे छ । निमिषाबेन तरुणभाई शाह (अंधेरी) "हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार” आ पुस्तक वांचीने अमने जाण थइ के आ संसारमा दटेक कारणोथी नरक गति मळे छ। नरक गतिमां परमाधामीओ आपणने केवा दुःखो आपे छे! नरकनां मुख्य चार द्वार छ । तेनी जाण थइ १) रात्रिभोजन, २) परस्त्रीगमन, ३) बोळ अथाj, ४) अनंतकायभक्षण । आ पदार्थोना सेवनथी नरक गतिज मळे छे। तेथी आ पदार्थथी आ पुस्तकनुं फ्रन्ट पेज जोइने ज मारा रुवांडां उभां थइ गयां | आना अंदरना नरकनुं अर्थ मारा अर्थ 'नहिं जाऊँ राक्षसोने कोठे (कतलखाने) आ पुस्तक यांच्या पछी रात्रिभोजन, गर्भपात, आत्मघात जेवा नीच कार्यो करवा योग्य नथी के जेनाथी मारो आ भव तो बगडे ने साथे जो परभव पण बगडतो होय तेमज जो आ बहु दर्लभ मनुष्य भव तेमां वळी जैन (75) हे प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!!
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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