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________________ विश्वासघात करी रह्यो है। अकबीजा जीवो उपर सितम गुजारी रह्यो छे । उपकारीओना उपकारने भूली जइ कृतघ्नी बनी रह्यो छे । बस... मानवी आ धरती उपर आवीने आमने आम पोताना जीवनमां पांच-आठ दश दायका बटावी जाय है। पौतानी जीवन रफतार पूरी करे छे । पण... सबूर...! आ पुस्तक ज्यारे में वांच्युं पहेला तो मने खबर पण न हती के नरकमां वा दुःखी होय । जैम आ पुस्तक वांच्चुं तेम मने नरकना दुःखी यांचीने हृदयथी कंपारी धती हवी के हवे तो जे नरकमां जवाना कारण छे तेथी ज हुं अटकवानुं प्रयत्न करीश । सर्व प्रथम तो में रात्रिभोजन नहीं करवानुं संकल्प कर्यो छे । मारी छ वर्षनी बालिकाओ पण ज्यारे आ बुकमांना चित्रो जोया ते दिवसथी अणे पण महिनाथी रात्रिभोजननो त्याग कर्यो छे जेथी मने बहु खुशी थइ छे । हवे ज्यां सुधी बने त्यां सुधी अमे नरकमां नहिं जवा माटे तप, त्यागने करवानी कोशीश करवानुं प्रयत्न करीशुं । चारुबेन प्रवीणभाई खंडोर (दादर) हमें पता चला है कि कौन सी नरक में कितने नरकवास है। और किस तरह से, और परमाधानी क्या है और वे वहाँ जाते है हर नरक में कितना अंतर और नरक किस तरह से होती है और परमाधामी हमें किस तरह से दुःख देते, इस नरक बुक से हमें बहोत कुछ जानने को मिला जो हम नहीं जानते थे में सब तो नहीं लिख सकती पर इतना कहती हुं की इस बुक से बहोत कुछ जानने को मिला है इस को तैयार करने वाले को धन्यवाद कहती हुँ । रमीलाबेन (भारतनगर) हार्ट अटेक, बी.पी., कॅन्सर, अक्षीडन्टना जमानामां आयुष्य पूर्ण धई युं ने नरकमा जवानुं वशे तो अक साथै आटला दुःखो केम सहन थशे अहीं फ्रीज, टीवी, पंखो, असी विना चालतुं नथी । तो त्यां माटुं शुं थशे ? विचार आवे छे। ये पुस्तक की अक्झाम दे के मुजे बहुत अच्छा लगा। जिस प्रकार में पाप करता था अब कम हो जायेगा । इस प्रकार की परीक्षा सबको देनी चाहिये, जिससे आज कि नवी पेढी पाप करना कम करे । अंकीतभाई अस. शाह (भारतनगर) (73) यह पुस्तक पढने के बाद ऐसा लगा कि बाप रे ! हम हर पल मन द्वारा कितने पाप बांधते रहे हैं, जो हमें सीधे नरक की ओर ले जाओगा। पहले हम सिर्फ नरक के बारे में सुना करते थे । वहाँ बहुत दुःख है पर इस बुक में चित्र के द्वारा हमें पता चला कि क्या क्या पाप करने से हमें कैसे कैसे हम अपने कर्मों का बंध कर रहे हैं। आज के युग में हमें थोड़ा भी दुःख हो तो हम मरने के बारे में सोच लेते ऐसा लगता है जैसे इस दुनिया में मुझ से बड़ा दुःखी कोइ नहीं पर जब ये बुक पढी तो पता चला कि नारकी के दुःख के आगे हमारा दुःख तो कुछ भी नहीं है। वहाँ की वेदना को पढ़ते ही, सुनते ही इतना और डर लगता है कि अगर प्रभु होते तो हमें भी कहते हैं "हे प्रभुजी! मारे पण नरक जावुं नथी" | आज हम चीज क्षणिक सुख के पीछे भाग रहे। उनके पीछे पागल बनकर इतना घोर पाप करते हैं तो हमारी मुक्ति कहाँ होगी। इस बुक को पढने के बाद तो ऐसा लगता है जिन शासन बिना चक्रवर्ति बनने का सौभाग्य भी प्राप्त हो तो नहीं चाहिये। बस जिनशासन का दासपणा भी मुझे मिले तो बस है। | भावनाबेन गुलाबचंद जैन (वावर) यह मालुम पडा की हसते हसते किये बुरे पाप कर्मों को रो रोकर नरक में भोगने पडते हैं। इसलिये अच्छा यह है कि इनको कर्म बांधने से पहले ही हमे समजना चाहिये नहीं तो फीर और लोग नरक में जायेंगे । इसलिये बुक को पढकर मैं यह संकल्प लेता हूं की हमें रात्रिभोजन, आचार, होटल का खाना और असल मे बोलना इनकी सौगंध लेनी चाहिये, और गर्भपात को रोकने के लिये हमें विश्वस्तर पर अभियान चलाने की जरूरत है और हो सके तो मैंने इस संसार को छोडने का प्रयास करके दीक्षा लेने का मन रखा है । आ पुस्तकमां अमने नारकीमां उत्पन्न थाय ते दुःख विषे खबर पडी ओक वात पाकी छे के जे जीव पाप करे तेने भोगववा वगर छूटको नथी। जेवा कर्म कर्चा तेटलुं भोगवुं पडशे ओटले पाप कर्या पहेलां नारकीनुं चित्र याद राखशो - हसता हसतां करेला कर्म रोतां पण न छूटे जे कर्तुं होय तेने शांतपणे समताथी सहन कर अम विचारीने आपणुं कर्म खपाववानुं छे कैटली नरको छे, केवी छे तेनी अमने खबर पड़ी कर्म अ तीर्थंकर परमात्माने पण न छोडचा तो आपणने शुं छोडसे अटले पाप कर्या पहेलां नरकने याद करो अने पापथी डरो। हे प्रभु! मुझे नरक नहीं जाना है !!!
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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