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________________ संपूर्णमान• लाख ८०६. योजन वो का "त्रिकाण्डमय हे प्रभु! मुझे नरक नहीं जाना है !!! Fabbith धनोदधिबलव बनवास वलय श सवात बलव सातमी नरक के आवास की लंबाई चौडाई और परिधि : ५६) रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावास कितने बडे है ? गौतम, इस जंबुद्विप के सर्व द्विप समुद्र में अभ्यंतर द्विप सब से छोटा है । वह तेल के पुडले जैसा गोल है और रथ के पैये जैसा गोल तथा पूर्णिमा के चंद्र जैसा गोल है । आचार्य भगवंत कहते है कि, तिन बार आंख मीचकर खुले उतनी बार वापस आये वो देव जंबुद्वीप के परिध के उत्कृष्ट शीघ्रता से गति करे तो ये देवको चलते चलते १दि, २ दि ३दि, उत्कृष्ट ६ मास तक तब कुछ नरकवासका पार आये उतना बडा नरकवास है। सातवी नरक अप्रतिष्टान नरकवासो अतिक्रमी जाय बाकी के चलते ६ मास भी अतिक्रमी कर सके इतना बड़ा है। सर्व वज्ररत्नमय है द्रव्य से शाश्वता है, पर्याय से अशाश्वता है। (46) रत्नप्रभा पृथ्वी [गाथा १२]] १. पो. २८. यो. ३ जलपण.८०.पी. आ શકિ ५७) नरक की भयानक स्थिति : महामूढ अज्ञानी जीव महारंभ, घोर परिग्रह, पंचेन्द्रिय का वध, मांसाहार आदि पाप करके, उस पाप के भार से ही पानी में लोहे के गोले की तरह वे जीव बिना कोई शरण के नीचे कुंभ में चले जाते है। वहाँ पहले तो उसके शरीर का बारिक हिस्सा जैसा होता है। जधन्य अंतमूर्हत बड़ा हो जाता है। संकिर्ण कुंभी में वह समा नहीं सकता है। वह जीव तेल की धाणी पीलाते हुए हाथी की तरह पोकार करता । उसको पैदा हुए देखकर यमदूत प्रसन्न हो जाते है । यमदूत उसे कहते है कि अर... र... र... यह दुष्ट को पकडो पकडो बोलकर बांस के टुकटे की तरह शस्त्र से पकड प्रलाप - चित्कार करते जल्दि से मारो, छेदो, काटो, बोलते हुए कठोर शस्त्र खड्ग, भाला आदि से कुंभीमेंसे नीकलते
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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