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________________ [गाथा २३०] अप्रतिष्ठान नरकावासनो देवाव [पृष्ठ-१५२] लंबाई-पहोळाई १ राज प्रमाण महारौरव PHATHADDuitam अप्रतिष्ठान महाकाल काल. wom रौरव :-उंचाई ३००० यो.. भण हजार) आ मागमा नारकोनी उत्पनि सातमी नारकीमा उर्व-अधो बन्ने स्थाननी ५२ हजार यो. पृथ्वी छोडीने बाकीना ३ हजार योजनमा एफज प्रतर छ. त्या मात्र पांचज नरकावासाओ छे. एक बच्चेछ. अनेचारे दिशापति एक एफ. केन्द्रमा छे ते बहारथी गोळाकार छे. एने फरता दिशावर्ति चार आवासो त्रिकोणाकारे छे. मध्यवर्ती नरकावारा १ लाख योजननोछे अने फरता चार असंख्य योजन छे. प्रत्येको उत्पत्तिस्थानो असंख्य छे.. प्रथम चार नरक में से आया हुआ जीव केवली बन सकता है। प्रथम पाँच नरक में से आया हुआ जीव साधु बन । सकता है। प्रथम नरक से छट्ठी नरक से आया हुआ जीव देश विरती श्रावक बन सकता है। जीव कोई भी नरक से नीकल कर समकित प्राप्त कर सकता है। सम्यक दर्शन प्राप्त कर सकता है। श्रेणिक प्रथम नरक से और कृष्ण महाराजा तीसरी नरक से नीकलकर तीर्थंकर बनेंगे। ५४) नरकवास कौन से आकार-संस्थान से है ? भगवान कहते है, गौतम, अंदर से गोलाकार बाहार से चोरस, नीचे क्षुरप्रना आकार जैसी है, वहाँ दुर्गंध रहती है । अशुचि से ग्रस्त, खून-मास-परु से सना हुआ कीचड, अत्यंत उष्ण, अति ठंड, अंधकार वाले दुःख की खाण रुप सर्व स्थान है। कोई देव अगर मेरु जितने विशाल पहाड को उष्ण नरक में डाले तो वह बरफ का विशाल पहाड जमीन पर गीरने से पहले ही पिघल जाता है। ऐसी अग्नि का फुककर अग्नि जैसा लालचोंर बने हुए मेरु जीतना लोढा गोलाजो शीत नरफ भूमि में अति कठीन व्रजमय विभाग पास छोटा मुख जैसा बनाया हुआ स्थान है। नरकवास दो प्रकार से है। १. श्रेणि बंध(अवलिका बंध) पंक्ति बंध २. अलग से पंक्ति आकार से मध्य मे वृत्ताकार(गोलाइ में) और त्रिखुटाकारे तीन भेद के नरकावास है। गोलाइ, त्रिकोण, चोरस, सुरेख पंक्ति बाहार के आवास विभिन्न प्रकार के होते है। ५५) नरकावास की लंबाई, चौडाई और परिधि: है गौतम, कोई नरक आवास संख्याता योजन विस्तार वाला है । तथा कोई नरक आवास असंख्याता विस्तार वाला है। वे राज योजन की लंबाई-चौडाईवाले है। परिधि संख्याता लाख योजन की है। ऐसा छट्टी नरक तक असंख्याता लाख योजन के विस्तार और परिधि सहित है। (45) हे प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!!
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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