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3 Ibid, p. 204. 32 A Primer of Indian Logic, p. 30. 3 A Critical Survey of India Philosophy, p. 204. 34 Ibid, p. 30.
आनन्द झा, पदार्थशास्त्र, पृ. 104. आनन्द झा, पदार्थशास्त्र, पृ. 104. A Primer of Indian Logic, p. 30. चट्टोपाध्याय एवं दत्त, भारतीय दर्शन, पृ. 132 हिन्दी साहित्य कोश, भाग-1, पृ. 26 *" Kappur Swami, Pakya, Sidhya and Hetu or Sidhana. 41 कुप्पू स्वामी शास्त्री, ए प्राइमर ऑफ इण्डियन लॉजिक, पृ. 190-191. 42 हिन्दी साहित्य कोश, भाग-1, पृ. 26 4"हिन्दी साहित्य कोश, भाग-1, सम्पादक-धीरेन्द्र वर्मा (प्रधान), पृ. 26 4" भारतीय दर्शन, भाग-2, पृ. 75
Inference or Reasoning (Anumînas) is another source of knowledge. In inference from certain material or data, which are given, we pass on to something which is not given but which can be known through and with the help of the give materials. The data or materials of inference are supplied by immediate apprehension. For examples : We see smoke and know there is fire, we see a man smiling and know he is joyous.
B.N. Roy, Text Book of Deductive Logic, p. 7. 45 भारतीय दर्शन, भाग-2, पृ. 62 46 हरिमोहन झा एवं मिश्रा (अनुवादक), भारतीय दर्शन, पृ. 126 47 अनुमान की प्रक्रिया में 'व्याप्ति और पक्षधर्मता दो अंश मुख्य हैं। अनुमान का दूसरा मुख्य भाग पक्षधर्मता है। 'संदिग्ध साध्यवान् पक्षः यह पक्ष का लक्षण किया गया है। जिसमें साध्य संदिग्ध अवस्था में रहता है, उसको 'पक्ष' कहते हैं। जैसे जब तक पर्वत में 81 वहिन की सिद्धि नहीं हो जाती है तब तक 'सन्दिग्धसाध्यवान्' होने से इस अनुमान में पर्वत 'पक्ष' कहलाता है। धूमरूप हेतु का इस पक्ष में रहना आवश्यक है। अन्यथा व्याप्ति का ज्ञान रहने पर भी पर्वत पर वहिन की सिद्धि नहीं हो सकती है। धूमादिरूप 'लिङ्ग' की पर्वतरूप पक्ष में स्थिति को ही पक्षधर्मता कहा जाता है। श्री मम्मटाचार्य, काव्य प्रकाश, (हिन्दी व्याख्या सहित), वाराणसी ज्ञान मण्डल लि., संवत्
2042, पृ. 258-59. 49 दत्त एवं चट्टोपाध्याय, अनु-झा एवं मिश्रा, पृ. 126 49 एस. कप्पूस्वामी, ए प्राइमर ऑफ इण्डियन लॉजिक, पृ. 30 50 राधाकृष्णन, भारतीय दर्शन, भाग-2, पृ. 102. राधाकृष्णन, भारतीय दर्शन, भाग-2, पृ. 102.
आनन्द झा, पदार्थ शास्त्र, पृ. 99-100 53 A Primer of Indian Logic, p. 28.
यद्यपि प्रकृत ग्रंथकार एवं टीकाकार ने केवल साधोपमिति की ही चर्चा की है। वैधर्योपमिति की नहीं, किन्तु साधर्योपमिति के समान वैधर्योपमिति भी मान्य है। आनन्द झा, तर्कसंग्रह दीपिका, पृ. 190
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