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________________ दशों दिवसोंके दश जाप्यमंत्र। [८७ उत्तम सत्य वचन मुख बोले । सो प्राणी संसार न डोले ॥४॥ उत्तम शौच लोभ परिहारी । सन्तोपी गुण रत्न भण्डारी ।।५।। उत्तम संयम पाले ज्ञाता । नरभव सफल करे लहि साता ॥६॥ उत्तम तप निवांछित पाले । सो नर कर्म-शत्रुको टाले ॥७॥ उत्तम त्याग करे जो कोई । भोगभूमि सुर-शिव-सुख होई ॥८॥ उत्तम आकिंचन व्रत धारे । परम समाधि दशा विस्तारे ॥९॥ उत्तम ब्रह्मचर्य मन लावे। नर सुर सहित मुकति फल पावे ॥१०॥ करे कर्मकी निर्जग, भव पीजग विनाश । अजर अमर पदको लहे, 'धानत' सुखकी राश ॥ दशों दिवसोंके दश जाप्यमंत्र। ॐ हीं अर्हन्मुखकमलसमुद्भताय उत्तमक्षमाधर्मागाय नमः ।।१।। ॐ ही " " " " मादेव ॥२॥ ॐ ह्रीं " " " आजेव ॥ ॥३॥ ॐ ही " " " सत्य , ॥४॥ ॐ ह्रीं , , , , शोचा ॥५॥ ॐ ह्रीं , , , , संयम , ॥६॥ " " " " तप , ॥७॥ " " " त्याग , ॥८॥ " , " आकिंचन्य ॥ ॥९॥ ॐ ह्रीं , , , , ब्रह्मचर्य . , ॥१०॥ 2 42 42 42 2 gggggg.gg 2 2 2242
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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