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श्रीदशलक्षण धर्म ।
इसलिये इस ब्रह्मचर्य्यके घातक बाल्यविवाह, बहुविवाह, वृद्धवि चाह और पुनर्विवाहको सर्वथा जलांजलि देकर, वेदया ओर परदाराका भी त्यागकर अच्छा तो यह है कि समस्त स्त्री मात्रका त्याग करके उत्तम ब्रह्मचर्य धारण करें, और यदि जो कोई ऐसा करने में असमर्थ होवें, उनको स्वदारसन्तोपत्रत ही मन, वचन, कायसे पालन करना चाहिये । इसीको कहते हैं -
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शील वाढ नव राख, ब्रह्म भाव अन्तर लखो । कर दोनों अभिलाप, करो सफल नरभव सदा || उत्तम ब्रह्मचर्य मन आनो, माता बहिन सुता पहिचानो । सहे वाण वर्षा बहु सूरे, टिके न नयन बाण लख कूरे || कूरे त्रियाके अशुचि तनमें काम रोगी रति करें । बहु मृतक सड़े मशान माहीं काक जिम चोंच भरे | संसार में विपवेलि नारी तज गये जोगीरा । द्यान धरम दश पैंड चढ़के शिवमहल में पग धरा ॥१॥ धर्म-फल |
अब अन्तमें दशलक्षण धर्मके फलको दर्शाते हुए जयमाल कहते हैंदश लक्षण वन्दूँ सदा, भाव सहित सिर नाँय । कहूं आरती भारती, हम पर होहु सहाय ॥ उत्तम क्षमा जहां मन होई । अन्तर बाहर शत्रु न कोई ॥ १ ॥ उत्तम मार्दव विनय प्रकाशे । नाना भेद ज्ञान सव भाषे ॥ २॥ उत्तम आर्जव कपट मिटावे | दुर्गति त्याग सुगति उपजावे ॥३॥
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