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उत्तम ब्रह्मचर्य । [८३ विषयसेवन करने में मुख्य कहां है ? केवल मूर्खजन ही सुख मानते
___ " नारीजवनग्न्ध्रस्थ,-विमुत्रमयचर्मणा ।
वागह इव विभक्षी, हन्त महासुखायते॥" इमीलिये यदि दुःखसे छूटना और सच्चा सुख पाना है, तो विषयांसहित अपने स्वरूपका ध्यान करो, यही उत्तम वाचर्य है।
वर्तमान ममयमें तो इस ब्रामचर्य व्रतकी कैसी दुर्दशा इस समालने की है जिसके कारण धर्म कर्म सबका मटियामेंट होगया है। एक ओर तो छोटे २ दुधमुंहें बच्चोंका विवाह प्रारम्भ कर दिया और दूसरी ओर बूट बाबाने विवाह करके व्यभिचारका मार्ग खोल दिया । ब्रामण लोभी होगये, उन्होंने स्वार्थवश अर्थका अनर्थ कर दिया, खोटी पुस्तकें बना २ कर जगतका नाश कर दिया, ज्योतिपकी शीघ्र पुस्तकमें लिख दिया-" अष्टवर्पा भवेद् गोरी, नववर्षा च रोहिणी । दशवर्षा संवत्कन्या ततो ऊर्ध्वं रजस्वला ॥ १ ॥" ____ इत्यादि लिखकर लिख दिया कि जो दश वर्षसे ऊपर कन्या 'घरमें रखता है, उसको प्रतिमास १ चालक मारनेकी हत्याका पाप लगता है ! बस, लोग गाडरी प्रवाहमें वह गये, और यहांतक इन ब्रामगुरुओंके आज्ञापालक बने कि गर्भके बालकोंकी सगाई और माताका स्तन चूसते हुवे पालनमें झूलते वर्धोका विवाह (लम) करके आपको धन्य मानने, और बड़ी उमरमें होनेवाले सम्बन्धोंको 'पुर्णित समझने लगे। दूसरी ओर इन ब्रमगुरुओंने यह सुझायाः
अपुत्रस्य गतिर्नास्ति' बस, फिर क्या था । एक २ आदमी अनेक