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________________ 'उत्तम त्याग। [६३ mmuni.mmswami..vaviww.views उनकी आवश्यकतानुसार आहार, औषधि, शास्त्र और अभय आदि दान दिया जाय। दान कई प्रकारसे दिया जाता है। जैसे भक्तिदान, करुणादान, कीर्तिदान, समदान इत्यादि । इनमें अंतके समदान और कीर्तिदान ये दो दान केवल लौकिक व्यवहारार्थ हैं । इनसे परमार्थ कुछ भी नहीं होता है किन्तु पहिले दो-भक्तिदान और करुणादान ये दान भक्तिदान साधु, मुनि आदि गुरुजनोंको, तथा 'साधर्मी व्रती श्रावकों और सम्यग्दृष्टि जीवोंको, उनके दर्शन, ज्ञान और चारित्रकी वृद्धिके अर्थ हर्पयुक्त होकर दिया जाता है । ____करुणादान दुःखित, भूखे, अंगहीन, 'अपाहिज, निःसहाय, बालक, वृद्ध, स्त्री, दीन जीवोंको, उनके दुख दूर करनेको करुणाभावोंसे दिया जाता है। सुदान और कुदान इस प्रकारसे भी दान दो प्रकारका है। सुदान वह है, जो भक्तिसे संयमी मुनि, व्रती, श्रावक, अवती सम्यग्दृष्टि आदि सुपात्रोंको तथा करुणाभावसे दुःखी, दीन, निःसहाय जीवोंका दिया जाय। कुदान वह है जो कीर्तिके लिये पात्र अपात्रको ने देखकर केवल विषयकषायोंको बढ़ानेवाली वस्तुएं जैसे, गज, 'अश्व, गाय, महिषी, गाड़ी, रुपया, पैसा, स्त्री, मकान आदि देना। ... . ऊपर चोरे प्रकारका दान तो सामान्य प्रकारसे बताया गया है, . 'किन्तु द्रव्य, क्षेत्रं, कॉल, और भावकी अपेक्षासे दानके प्रकारों में भी
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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