________________
[२]
दिया है जिससे दशलक्षण व्रतके १० उपवास करनेवालोंको दशलक्षण व्रतःकथा पढ़नेमें तथा उद्यापन करनेमें सुभीता होगा | इस व्रतक उद्यापनमें १०० कोठेका साथिया निकालना पड़ता है तथा सब प्रकारके दश २ उपकरण मंदिरमें चढ़ानेका रिवाज है वह यथाशक्ति करना चाहिये तथा दशलक्षण व्रत करनेवालोंको खास करके शास्त्रदानमें अच्छी रकम निकालना चाहिये और इस पुस्तककी प्रभावना तो अवश्य २ करनी चाहिये । अब कांच व धातुके वर्तनोंकी प्रभावनाकी आवश्यक्ता नहीं है, यह ख्याल रखना चाहिये ।
दूसरी आवश्यक सूचना यह है कि इस ग्रन्थका आद्यंत मननपूर्वक वारवार स्वाध्याय करते रहें और दशलाक्षणिक व्रतके दिनों में नित्य एक२ धर्मका पाठ सबको सुनाना चाहिये व उसपर विशेष उपदेश देते रहना चाहिये । यदि हम इन दश धमका अच्छी तरहसे पालन कर सकेंगे तो सब कुछ कर सकेंगे ऐसा निःसंशय कहा जा सकता है ।
आशा है इस चतुर्थावृत्तिका भी शीघ्र ही प्रचार हो जायगा ।
सूरत वीर सं० २४६८ चैत्र सुदी १२ ता. २७-२-४२
निवेदक
मूलचन्द किसनदास कापड़िया ।
- प्रकाशक ।