________________
निवेदन
जैन धर्ममें धर्मके दशलक्षण बताये गये हैं अतः उसको दशलक्षण धर्म कहते हैं और इसीपर धर्मकी इमारत खड़ी है । इसका इतना महत्व है कि इसीके नामसे जैनोंका महान पर्व दशलक्षण पर्व प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
जैन भाषा शास्त्रोंमें इन दश धर्मोका स्वरूप सामान्यरूपसे दर्शाया गया है लेकिन सर्वसाधारणके समझनेमें आजावें उस प्रकारसे इनका स्वरूप दर्शानेवाले ग्रन्थकी बड़ी आवश्यक्ता थी जिसको हमारे निवेदनसे स्व० धर्मरत्न पं० दीपचन्दजी वर्णी (नरसिंहपर सी. पी. निवासी) ने २८ वर्ष हुए पूर्ण कर दी थी। तब हमने वीर सं० २४४० में उसकी २००० प्रतियां छपाकर वितरित की थीं, फिर इसकी दूसरी आवृत्ति वीर सं० २४४३ में प्रकट की और तीसरी आवृत्ति वीर सं० २४५३ में प्रकट की थी। वह भी खतम हो जानेसे इसकी यह चतुर्थ आवृत्ति प्रकट की जाती है।
इस आवृत्तिमें इसवार कई विशेषताएं की गई हैं जैसे कि मुखपृष्ठपर खास खर्च करके 'दशधर्म दीपक ' का आकर्षक व भावपूर्ण चित्र बनाकर रखा है तथा भीतर दशलक्षण व्रत कथाके साथ २ स्व० ब्र० सीतलप्रसादजी कृत एक दशधर्म भजन और आचार्यश्री सुमतिसागरजी कृत दशलक्षण व्रत उद्यापन भी जोड़