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श्रीदशलक्षण धर्म |
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होनेसे कथंचित् उसके विपय और कपार्योकी पुष्टि भी होजाती है, तौभी प्रगट होने अर्थात् भेद खुल जानेपर सब पोल खुल जाती है। और फिर उसकी एकवार भी झूठ पकड़ जानेपर सदा के लिये उससे विश्वास उठ जाता है ।
कारण,
संसार में न रहती ।
कितनेक लोग कहते हैं कि झूठ विना व्यवहार नहीं चल सकता है, परन्तु यह कल्पना उनकी झूठी है। यदि झूठ विना व्यवहार न चलता, तो सत्यकी आवश्यकता ही यहांतक कि लोग सत्यका नाम भी भूल जाते, परन्तु देखा जाता है कि जो लोग झूठ बोलते हैं, या अपनी झूठी बातोंका प्रचार करना चाहते हैं, या झूठसे द्रव्योपार्जन करना चाहते हैं, या मानादि कषा - योको पुष्ट करना चाहते हैं या मनोरंजन व हास्यादिक करना चाहते. हैं, वे भी तो लोगों में अपने झूठको सत्यरूपसे ही प्रगट करके लोगों का विश्वास अपने ऊपर खींचते हैं और तब सत्यकी ओटमें होकर ही अपने इच्छित विषयकी पूर्ति करते हैं ।
क्योंकि यदि पहिलेसे ही लोगोंको यह प्रगट होजाय कि यह पुरुष झूठ बोलता है, तो फिर भला उसके जाल में फंसे ही कौन ? क्या कोई संसार में ऐसा भी मनुष्य है कि जो आँखसे देखता हुआ और जानता हुआ भी अर्थात् अपने हाथमें दीपक लिये हुब उसका प्रकाश रहते भी कुएमें गिर जाय ? और मान लो कि कदाचित् कोई भूलसे किसी प्रकार गिर भी जाय, तो क्या वह लोकमें चतुर कहा जा सकता है ? और क्या वह सुखी हो सकता है ? नहीं; कभी नहीं । तात्पर्य - जो झूठ भी संसार में चल जाता है और उससे जो
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