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उत्तम आर्जव । - [२७ mea irant.ma .mmsenees awr swamnetweexey प्रकारसे भी अपनी रक्षा कर सकते हैं परन्तु इन मीठे बोलनेवाले अस्तीनके सांपों सरीखे मायाचारियोंसे बचना तो बहुत कठिन तो क्या असंभवसा ही है। कहा है
'अरकसिया (करोंत) के मुख नहीं, नहीं गौंचके दंत । जे नर धीरे बोलते, इनसे बचिये संत "॥१॥
क्योंकि ये लोग सदा मीठी मीठी बातोंमें अन्तरंगका हाल जानकर बाहिर प्रगट कर देते हैं । ये कभी किसीसे मित्रता तो करते ही नहीं है। ये लोग तो जहां अपना मतलब होते देखते हैं कि झटसे वहीं जा मिलते हैं। इनके वचनकी स्थिरता तो होती ही नहीं है। झूठ बोलनेका तो इनका स्वभाव ही पड़ जाता है अथवा झूठ बोलनेमें ये पाप ही नहीं समझते हैं, इसलिये सदा ऐसे लोगोंसे बचते रहना ही ठीक है। • ये लोग अपने प्रयोजन साधनार्थ व कौतुकवश दूसरोंको घात पहुँचानेकी चेष्टा करते रहते हैं, परन्तु औरोंका घात तो उनके पूर्वकृतकर्मानुसार होवे अथवा नहीं भी हो, किन्तु मायाचारीका घात उसके. परिणामोंसे तो सदा हुआ ही करता है । जैसे दर्पणमें मुंह देखनेपर जैसा टेढ़ा सीधा करके देखो वैसा ही दिखने लगता है; ठीक, यही हाल मायाचारियोंका होता हैं। जो औरोंके लिये कुआ खोदते हैं, 'उसमें वे आप ही अनायास गिर जाते हैं। कहा है-"जो कोई कूपः खने औरनको, ताको खाई तयार ।” सत्य है ओसका मोती कबतक स्थिर रहता हैं ? . . . . . . .. । .... एक समय एक कौआ. मोरोंके पंख: पहिन कर अपने आपको