________________
२२] श्रीदशलक्षण धर्म । ANANARTANANEWASANAWARAN.NPATREENAKSHARAMVARAVATIvaxminine शत्रु नहीं, और मानीका कोई मित्र नहीं होता है। देखो, आंधीके झकोरोंसे बड़े बड़े मोटे और कठोर वृक्ष मूल सहित उखड़ जाते हैं परन्तु नम्र होनेसे पतला भी बैंतका वृक्ष आंधीसे कभी नहीं उखड़ता किन्तु वह अपने विनय गुणसे वैसा ही बना रहता है। कहा है
. कोई न मीत कठोरको, मृदुको कोई न अरात् । । ___इसलिये अन्तरङ्ग मान कषायको त्याग करना और व्यवहारसे अपनेसे कुल, वय, पद, विद्या, गुण, चातुर्य, तप, ज्ञान, चारित्र आदिमें जो बड़े हैं उनका यथायोग्य विनय सुश्रूषा ( सत्कार ) करना तथा छोटोंमें दया प्रेम व नम्रता रखना, और अविनयी व विरोधी. पुरुषोंमें माध्यस्थभाव रखना, यही मार्दव गुण है। कभी अपने मुंहसे स्वप्रशंसा नहीं करना और न कभी परनिंदारूप निंद्य वाक्य कहना यही विनयका लक्षण है । अपनेसे बड़ोंको नमस्कार करना, उचासन देना, समक्ष होकर नहीं बोलना, उनकी आज्ञा मन, वचन, कायसे यथाशक्ति पालन करना, वे चलें तो उनके पीछे पीछे चलना, उनके गुणोंकी प्रशंसा करना, उनके उत्तम गुणोंका अनुकरण करना, उनके द्वारा अपने ऊपर हुए उपकारको नहीं भूलना, इत्यादि विनय है । प्रसंगवश यह भी लिख देना उचित है कि किसका किसके साथ कैसा. व्यवहार होना चाहिये ? यथा
नमोऽस्तु गुरवे कुर्याद्वंदना ब्रह्मचारिणे । इच्छाकारं समिभ्यो वंदामीत्यार्थिकादिषु॥१॥ ... .
श्राद्धाः परस्परं कुर्युः इच्छाकारं स्वभावतः.. ... ... ... ...: जुहारुरिति लोकेस्मिन्नमस्कार स्वसज्जनः ॥ २॥ .. ....