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उत्तम मादेव । - [१५ स्थिति पूर्ण करके निर्जर जायगा, तब मेरा यह सब विनय लुप्त हो जायगा । क्योंकि कहा है.. "सदा न फूले केतकी, सदा न श्रावण होय ।
सदान यौवन थिर रहे, सदा जियत नहिं कोय ॥"
अर्थात्-जिन कारणोंसे तू अपने आपको बड़ा मान रहा है, वे सब कारण एक दिन नष्ट होजायगे। क्योंकि प्रकृतिका ऐसा ही नियम है। कार्तिकेयस्वामीने भी कहा है
"जम्म मरणेण सम, संपन्जई जुव्वणं जरा सहिया । लच्छी विनाश सहिया, यह सव्वं क्षणभंगुरं मुणह॥"
अर्थात्-जन्मके साथ मरण, यौवनके साथ बुढ़ापा और लक्ष्मीके साथ दरिद्रता लगी हुई है। इसलिये ये सब क्षणभंगुर (विनाशवान् ) जानने चाहिये। ____ जब संसारके सर्व ही पदार्थ (पर्याय अपेक्षा) विनाशवान् हैं, तो फिर मान किस बातका ? देखो, शरीरका बल और सौन्दर्य बुढ़ापा आते ही नष्ट होजाते हैं, सब इन्द्रियां शिथिल होजाती हैं जिससे वे अपने अपने विषयको ग्रहण कर नहीं सकतीं।।
यौवन था तब रूप था, थे ग्राहक सब लोय । • यौवन रत्न गुमो पुनः, बात न पूछे कोय ॥
इसलिये अभी तुम जो रूप सौंदर्य आदिके मदसे अपनी तरुणावस्थामें औरोंका हास्य व निन्दा करते हो सो वे भी तुम्हारी . जरावस्था होनेपर तुम्हें हंसेंगे तब तुम्हें बहुत दुःख होगा और तुम्हारा , मान गल जायगा, जिससे तुमको क्रोध उत्पन्न होनेसे तुम्हारा रहा सहा ..