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________________ ༤ཝཔསལ། པདྨ་ནས ཧ ཝཱབའ、དང་་ན་་དང་་ , ,་,་ན་ 、 ༥༣ ་་་ ་་་ཡ་ཡནས १०८] श्रीदशलक्षण धर्म । गोमहिपीगजाश्वानां पापगर्वविदूरगं । मुनि सुमृदुतायुक्तं महामि जलमोदकैः ॥ १०॥ ॐ ह्रीं चतुप्पदादिगर्वरहितमार्दवांगाय जलादिकं० ॥१०॥ जलगंधादिकैः पुष्पैः दीपधूपफलोत्तमैः । मादवांगवरं चर्चे शुद्धधर्मोपदेशकं ॥ ॐ हीं मार्दवांगाय महार्य निर्वपामीति स्वाहा । अथ जयमाला। घत्ता। गर्व विनाशक, मदपरिनाशक, धर्मासन वर शुद्ध मुनि । बहुकर्म निराकर, मार्दव शुभकर, जिनशासन गृहकथित मुनि ॥१॥ जय मार्दव अंग विशाल रूप । जय मार्दव सेवित सुमुनि भूप ॥ वर जाती मद न करोति मुनि । वर भव्य संबोधन धर्म गुणी ॥२॥ जाति गर्व बहु पाप भयंकर । जाति गर्व कुत्सित नर दुखधर ॥ जाति गर्व कुलहीन सुभवपर। जातिगर्व न विकार सुमतिपर ॥ ३ ॥ . रूपगर्व गुणंगण सब टाले । रूपगर्व अपकीर्ति सुभाले। रूपगर्व अवकुरूप सुघरपर । ___ रूपगर्व · निंदागृह परनर ॥ ४ ॥
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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