________________
५) विहार या गोचरी के समय बहुत से लोगों का वह उपहासपात्र या
दयापात्र हो सकता है। जब देवताप्रीत्यर्थ बलिविधान किया जाता है तब बलि का पशु भी सुलक्षणी और अव्यंग होता है । साधु तो आदर्शभूत है । वह सभी दृष्टि से अव्यंग होने की ही अपेक्षा की जाती है ।
जैन सिद्धान्तों की अगर बात करें तो अनेकान्तवाद समझाने के लिए भी हाथी और सात अन्धों का दृष्टान्त किया जाता है ।
२०