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________________ भगवान महावीर के ज्ञान, दर्शन आदि अनन्त गुणों को जगत् के हर उत्तमोत्तम, सर्वश्रेष्ठ वस्तु या पदार्थ की उपमा से उपमित करने का प्रयास सुधर्माजी ने किया है । जिसकी एक प्रदीर्घ नामावली यहाँ मिलती है । जो आज भी कवियों द्वारा उपमाओं के लिए प्रयुक्त होती हैं । जैसे अपनी अपनी जातियों में सर्वश्रेष्ठ - ऐरावत हाथी, अरविन्द, गंगानदी, शाल्मली वृक्ष, नन्दनवन, इक्षुरस, अभयदान, ब्रह्मचर्य, तप आदि । आचार्य सुधर्मा की काव्य प्रतिभा से कभी एक एक गुण के लिए एक एक उपमा दी गई है, जैसे आन्धी-तूफान में अविचल, अनेक देवताओं को भी प्रमुदित करनेवाले सुमेरु पर्वत की उपमा । जिससे जैन दर्शन के भूगोल एवं खगोल की भी जानकारी मिलती है । इन सारी उपमाओं से उपमित करनेपर भी अनन्त गुणों के धारक, भगवान महावीर अनुपमेय ही है क्यों कि महावीर शब्दातीत है । सह सान्निध्य से ब्राह्मण और श्रमण परम्परा एकदूसरे से कम ज्यादा प्रभावित होती रही है । इसका उदाहरण यहाँ मिलता है । तत्कालीन वैदिक समाज में इन्द्र देवता ज्यादा पूजी जाती थी । इन्द्र महोत्सव आदि त्यौहार भी मनाये जाते थे । शायद इसी के प्रभाव से वीर-स्तुति में इन्द्र देवता का जिक्र अनेक बार हुआ है । वैसे ही तत्कालीन समाज में प्रचलित यज्ञ सम्बन्धित वैरोचन अग्नि का भी जिक्र इसमें हुआ हैं। _ 'वीरस्तुति' की अन्तिम गाथा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । क्योंकि उसमें अनेक बातों का निर्देश है । आचार्य सुधर्माजी अन्तिम गाथा में कहते हैं, “अरिहन्त द्वारा भाकित, युक्ति संगत, शब्द और अर्थ से शुद्ध धर्म को सुनकर श्रद्धा करनेवाले को शीघ्र ही मोक्षप्राप्ति या उच्च वैमानिक देवगति प्राप्त होती है ।" इसमें सोच्चा १२६
SR No.009489
Book TitleArddhmagadhi Aagama che Vividh Aayam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherFirodaya Prakashan
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other
File Size1 MB
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