SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माहण, अन्यतीर्थी आदि सभी को भगवान महावीर की ओर आकृष्ट किया । अनायास ऐसा कल्याणकारी सत्यधर्म समझानेवाले इस महामानव को जानने की इच्छा इन सबको हुई । जम्बूस्वामी महावीर के द्वितीय पट्टधर थे । जिन्होंने भगवान महावीर को देखा या सुना नहीं था । उन्हें भी ऐसे युगपुरुष को जानने की जिज्ञासा थी ही, तो उन्होंने इन सभी जिज्ञासुओं की ओर से अपने गुरु आचार्य सुधर्मा से भगवान महावीर के बारे में पूछा । आचार्य सुधर्मा ही एक ऐसे अधिकारी व्यक्ति थे कि जो महावीर को यथातथ्य जानते थे । आचार्य सुधर्मा भगवान महावीर के पाँचवें गणधर एवं शिष्य कि जिन्होंने भगवान महावीर के पास दीक्षित होकर लगातार तीस वर्षतक उनके पादमूलों में बैठकर विविध अनुभवों को संजोया, ज्ञानकणों का अर्जन किया । भगवान महावीर की अध्यात्म साधना को नजदीकी से देखा था । केवलज्ञानी प्रभु महावीर की हर साँस से वाकिफ थे आचार्य सुधर्मा । इसलिए सम्पूर्ण महावीर-व्यक्ति- दर्शन केवल सुधर्मा ही यथाश्रुत और यथातथ्य करा सकते थे । यह सब ध्यान में लेकर प्रखर प्रज्ञा के धनी जम्बूस्वामी आचार्य सुधर्मा से भगवान महावीर के आत्मिक, आन्तरिक गुण - ज्ञान, दर्शन, शील आदि के बारे में पूछते हैं । महावीर के शरीरांगोपांग, माता-पिता, नगरी या पारिवारिक सम्बन्धों के बारे में नहीं । यहाँ वीर-स्तुति में महावीर को णायसुय, णायपुत्र, कासव, वद्धमाण आदि कुल एवं गोत्र निर्देशक नामों से सम्बोधित किया है । 'महावीर' नामोल्लेख एक बार भी नहीं है । सम्भव है 'महावीर' का यह नामाभिधान उत्तरवर्ती आचार्यों ने किया हो । १२५
SR No.009489
Book TitleArddhmagadhi Aagama che Vividh Aayam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherFirodaya Prakashan
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy