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________________ ARDOTMD कार्तिक-मास पांचवाँ RAI Pop PORON मिति चौपाई VIRALAMES कातिक में सुत करें विहार। कांटे कांकर चुभै अपार। मारे दुष्ट बैंच के तीर। फाटे उर थरहरे शरीर।। अर्थः- हे पुत्रों ! कार्तिक मास में मुनि जब विहार करते हैं तब शरीर में अपार काँटे और कंकड़ चुभते हैं तथा दुष्ट जन जब बैंचकर तीर मारते हैं तब उससे हृदय तो फट जाता है और सारा शरीर थरथराहट करके काँप उठता है। गीता छंद थरहरे सगरी देह अपने, हाथ काढ़त नहिं बने। नहिं और काहू से कहें तब, देह की थिरता हने। कोई बैंच बांधे थम्भ से, कोई खाय आंत निकाल के। कुल आपने की रीति चालो, राजनीति विचार के।। अर्थः- तीर से जब सारा शरीर थरथराहट करता है तो अपने हाथों से वह तीर निकालते बनता नहीं है और अन्य किसी से निकालने को कहते नहीं हैं तब देह की स्थिरता का हनन हो जाता है और कोई दुष्ट तो बैंचकर खम्भे से बाँध देता है और कोई आंत निकालकर खा जाता है इसलिए तुम राजनीति के अनुसार राज्य करके अपने कुल की रीति का अनुसरण करो। चौपाई पद-पद पुण्य धरा में चलें। कांटे पाप सकल दलमलें। क्षमा ढाल तल धरें शरीर। विफल करें दुष्टन के तीर।। अर्थः- हम पग-पग पर पुण्य रूपी भूमि पर चलेंगे, पाप रूपी सारे कांटों के समूह को मसल देंगे और क्षमा रूपी ढाल के तल को शरीर पर धारण करके दुष्ट जनों के तीरों को निष्फल कर देंगे। _ गीता छंद कर दुष्ट जन के तीर निष्फल, दया कुंजर' पे चढ़ें। तुम संग समता खड्ग लेकर, अष्ट कर्मन से लड़ें। धनि धन्य यह दिन वार प्रभु ! तुम, योग का उद्यम किया। तुमरी समझ सोई समझ हमरी, हमें न प पद क्यों दिया।। अर्थः- दुष्टजनों के तीरों को निष्फल करके हम दया रूपी हाथी पर चढ़ेंगे और आपके साथ समता रूपी खड्ग (तलवार) लेकर आठ कर्मों से लड़ाई करेंगे। हे प्रभु ! आज का यह दिन धन्य है और यह वार धन्य है जो आप योग का उद्यमकरने जा रहे हैं परन्तु जो आपकी समझ है सो ही हमारी भी समझ है, हमें आप राज्यपद क्यों दे रहे हैं ! MAA अर्थः- १. हाथी। २.तलवार । COINiva
SR No.009488
Book TitleVajradant Chakravarti Barahmasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainsukh Yati, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherKundalata and Abha Jain
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size184 MB
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