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________________ DFADAKHA की ११ असौज-मास चौथा HARRAM चौपाई आसुज भोग तजे नहिं जाय। भोगी जीवन को डसि रवाय। मोह लहर जिया की सुधि हरे। ग्यारह गुणथानक चढ़ि गिरे।। अर्थः- असौज में तुमसे भोग छोड़े नहीं जाएंगे, ये भोग भोगी जीवों को सलाह सर्प के समान डसकर खा जाते हैं और उससे मोह रूपी विष की जो तन में लहरें चलती हैं वे हृदय की सुध को हर लेती हैं और ग्यारहवें गुणस्थान पर भी चढ़कर वहाँ से मोह की लहरों के वश जीव नीचे गिर जाता है। गीता छंद गिरे थानक ग्यारवें से, आय मिथ्या भू परे। बिन भाव की थिरता जगत में, चतुर्गति के दुःख भरे। रहें द्रव्यलिंगी जगत में, बिन ज्ञान पौरुष हार के। कुल आपने की रीति चालो, राजनीति विचार के।। अर्थः- ग्यारहवें गुणस्थान से गिरकर जीव पहले गुणस्थान में मिथ्यात्व की भूमि पर आकर पड़ जाता है, बिना आत्मज्ञान के पुरुषार्थ को हारकर द्रव्यलिंगी ही रह जाता है और भाव की स्थिरता के बिना संसार में चारों गतियों के दुःखों को भोगता है अतः तुम राजनीति के अनुसार राज्य करके अपने कुल की रीति का अनुसरण करो। चौपाई विषय विडार' पिता तन कसैं। गिर कन्दर निर्जन वन बसे। महामंत्र को लखि परभाव । भोग भुजंग न घालें घाव।। अर्थ:- हे पिताजी ! विषयों का त्याग करके कायक्लेश के द्वारा तन कसकर हम पहाड़ों की गुफा अथवा निर्जन वन में निवास करेंगे और णमोकार मंत्र का प्रभाव देखकर भोग रूपी साँप हमें डसकर घाव नहीं करेंगे। गीता छंद घालें न भोग भुजंग तब क्यों, मोह की लहरां चढ़ें। परमाद तज परमात्मा, परकाश जिन आगम पढ़ें। फिर काल लब्धि उद्योत होय, सुहोय यों मन थिर किया। तुमरी समझ सोई समझ हमरी, हमें न प पद क्यों दिया।। अर्थ:- जब भोग भुजंग घाव नहीं करेंगे तब मोह की लहरें कैसे चढ़ेंगी ! प्रमाद को छोड़कर परमात्म-तत्त्व को प्रकाशित करने वाले जिन आगम को जब हम पढ़ेंगे तब काललब्धि का उद्योत होगा ही होगा, इस प्रकार हमने अपने मन को स्थिर कर लिया है और जो आपकी समझ है र सो ही हमारी भी समझ है हमें आप राज्यपद क्यों दे रहे हैं! AME अर्थः- १. छोड़कर। २.पहाड़ की गुफा। ३.साँप । WIN RERNA H-IN PISO900000000000
SR No.009488
Book TitleVajradant Chakravarti Barahmasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainsukh Yati, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherKundalata and Abha Jain
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size184 MB
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