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________________ SAIRATNDNS भाद्रपद मास तीसरा चौपाई भादौ में सुत उपजे रोग। आवें याद महल के भोग। जो प्रमाद वश आस न टले। तो न दयाव्रत तुमसे पले।। अर्थः- हे पुत्रों ! जब भादौ के महिने में शरीर में रोग पैदा हो जाएंगे तब महल के भोग तुम्हें याद आएंगे और प्रमाद के वश यदि भोगों की आशा नहीं टलेगी तो फिर तुमसे दयाव्रत का पालन नहीं हो सकेगा। गीता छंद जब दयाव्रत नहिं पले तब, उपहास जग में विस्तरे। अर्हत अरु निर्ग्रन्थ की कहो, कौन फिर सरधा करे। तातें करो मुनि दान पूजा, राज काज संभाल के। कुल आपने की रीति चालो, राजनीति विचार के।। अर्थः- दयाव्रत का जब पालन नहीं हो सकेगा तो जगत में उपहास होगा ओर फिर बताओ कि वीतराग अर्हत देव और निर्ग्रन्थ गुरु की कौन श्रद्धा करेगा इसलिए तुम राज्य का काज संभालके श्रावक के मुख्य कर्तव्य पूजा और मुनियों को आहार-दान ही करो और राजनीति के अनुसार राज्य करके अपने कुल की रीति का अनुसरण करो। चौपाई हम तजि भोग चलेंगे साथ। मिटें रोग भव भव के तात। समता मन्दिर में पग धरै। अनुभव अम त सेवन करें।। अर्थ:- हे तात ! हम भोगों को तजके आपके साथ ही वन को चलेंगे जिससे हमारे भव-भव के रोग मिट जाएंगे, समता मन्दिर में हम प्रवेश करेंगे और आत्म-अनुभव रूपी अम त का सेवन करेंगे। गीता छंद करें अनुभव पान आतम, ध्यान वीणा कर धरैं। आलाप मेघ मल्हार सो हं, सप्त भंगी स्वर भरें। ध ग्-ध ग् पखावज भोग कू, सन्तोष मन में कर लिया। तुमरी समझ सोई समझ हमरी, हमें न प पद क्यों दिया।। अर्थः- अनुभव रस का पान करके हम आत्म-ध्यान रूपी वीणा हाथ में लेंगे, मेघमल्हार के राग में सो हं का गीत गाएंगे और उसमें सात नयों की सप्तभंगी के स्वर भरेंगे, पखावज बाजे की ध ग-ध ग ध्वनि यह घोतित करेगी कि भोगों को धिक्कार हो ! धिक्कार हो ! अब भोग नहीं चाहिएं, उनसे हमने मन में संतोष धारण कर लिया है और आपकी जो समझ है सो ही हमारी भी समझ है, हमें आप राज्यपद क्यों दे रहे हैं! Gooo
SR No.009488
Book TitleVajradant Chakravarti Barahmasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainsukh Yati, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherKundalata and Abha Jain
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size184 MB
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