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अन्तिम पृष्ठ
॥ सि० ॥ श्रीमतिसंतजन विंततहायक। मंगल सि६ समूहसकलज्ञेया कतज्ञायक | मंगल सूरमा हंतिभ्रगु एवं तिविमलमति। उपायेध्यासि क्षेतपाठकारक प्रवीन व्यति॥निज सिह रूपसाधन करतिसाधुपरममंगल करए । मनवचनकायलवलायणितिभागचंद वंदति चरए।। २ । गोपा चलके निकट सिंधियानृपत्तिकर का वनीश नवकुन सहजहांजिनभक्तिभावभर तिनिमें तेरापंथगोष्ट राजतिविशिष्टच्छति । पार्श्वनाथ जिन धामर यो जिनसुभगा अति तहदेवघ निकारूपमहभागचंदर चनांकरिया जयवंतही हसतसंग नित जाप्रसाद बुध विस्तरिया देव हा॥ संवत्सरगुन ईससे बाद सकयरिधारि) होजकल आसादकी पुन्यच निकासा ॥४॥ इ तिश्रीनपदेस सिद्धांत रतन मालानामग्रंथ संपूर्णम् ॥ संवतार ३०/ कार्त्तिकयुका प्रमँगल वार। इंद्रप्रस्थीय जैसिंहपुराख्यनिवासिना चैनसुखमिश्र एाले खि शुभम्। लोक
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