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आचरण अंश मात्र भी करना योग्य नहीं है ।। ७५ ।।
(३१) घर के स्वामी के द्वारा मिथ्यात्व की अंश मात्र भी प्रशंसादि करना योग्य नहीं है क्योंकि घर के कुटुम्ब का स्वामी होकर भी जिसने मिथ्यात्व की रुचि और सराहना की उसने अपने सारे ही वंश को संसार समुद्र में डुबा दिया | ७७ ||
(३२) डंडाचौथ, गोगानवमी, दशहरा, गणगौर एवं होली आदि का तथा और भी जिनमें मिथ्यात्व एवं विषय- कषाय की वृद्धि होती है ऐसे समस्त प्रकार के मिथ्या पर्वों का आचरण करने वालों के सम्यग्दर्शन नहीं है, मिथ्यात्व ही है । ।७८ । ।
(३३) जो स्वयं दृढ़ श्रद्धानी हैं ऐसे कोई विरले उत्तम पुरुष ही अपने समस्त कुटुम्ब को उपदेशादि के द्वारा मिथ्यात्व से रहित करते हैं सो ऐसे पुरुष थोड़े हैं । ।७९।।
(३४) मिथ्यात्व के उदय में जीवों को प्रकट भी जिनदेव प्राप्त नहीं होते । । ८० । ।
(३५) जो पुरुष मिथ्यात्व में आसक्त है और सम्यग्दर्शनादि गुणों में मत्सरता धारण करता है वह पुरुष क्या माता के उत्पन्न हुआ अपितु नहीं हुआ अथवा उत्पन्न भी हुआ तो क्या वृद्धि को प्राप्त हुआ अपितु नहीं हुआ ।। ८१ । ।
(३६) मिथ्यात्व का सेवन करने वाले जीव को सैकड़ों विघ्न आते हैं परन्तु उन्हें मूर्ख लोग गिनते नहीं हैं और धर्म का सेवन करते हुए किसी को यदि किंचित् भी विघ्न हो तो उस विघ्न को धर्म से हुआ कहते हैं- ऐसी विपरीत बुद्धि का होना मिथ्यात्व की महिमा है । । ८४ ।।
(३७) मिथ्यात्व सहित जीव को परम उत्सव भी महा विघ्न है क्योंकि उसके किसी पुण्य के उदय से वर्तमान में सुख सा दीखता है परन्तु मिथ्यात्व पाप का बंध होने से आगामी नरक का महा दुःख उत्पन्न होता है इसलिए मिथ्यात्व सहित सुख भी भला नहीं है ।। ८५ ।।
(३८) मिथ्यात्व से युक्त जीव धनादि सहित हो तो भी दरिद्र है क्योंकि परद्रव्य की हानि - वृद्धि से वह सदा आकुलित है ।। ८८ ।। (३९) जिसको धर्म कार्य तो रुचता नहीं, जैसे-तैसे उसको पूरा करना
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