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MA (३०) तीर्थंकर देवों की पूजा सम्यक्त्व के गुणों की कारण है।।९०|| Glo (३१) सम्यक्त्व सहित जीव जिनभाषित धर्म को सत्यार्थ जानता है एवं अन्य Clo al मिथ्यादृष्टि लोगों की सब रीति को मिथ्या जानता है।।९१।।
(३२) शास्त्रों का विशेष अभ्यास सम्यक्त्व का मूल कारण है ।।९२।। म (३३) सम्यग्दृष्टि जीव हरिहरादि की ऋद्धियों एवं समृद्धि रूप वैभव में भी नहीं AWA रमते तो अन्य विभूति में तो कैसे रमेंगे अर्थात् नहीं रमेंगे क्योंकि ज्ञानी जीव VA ©© बहत आरम्भ और परिग्रह से नरकादि के दःखों की प्राप्ति जानते हैं और उ© aM केवल सम्यग्दर्शनादि ही को आत्मा का हित मानते हैं ।।९५|| ans (३४) सम्यक्त्व सहित जीवों के द्वारा तो वे जीव निन्दनीय ही होते हैं जो .5 AM तपश्चरण आदि क्रियाओं का आगम रहित बहुत सा आडम्बर करते हैं ||१०० ।। NE (३५) सम्यक्त्व का मूल कारण तो जिनेन्द्र देव, निग्रंथ गुरु और जिनधर्म का
श्रद्धान है और यही धर्म की उत्पत्ति का मूल कारण है, इसके सिवाय अन्य all कुदेव, कुगुरु एवं कुशास्त्रादि तो पाप के स्थान हैं ।।१०३ ।। Gy (३६) सुगुरु सम्यक्त्व का मूल कारण है।।१०४ ।।
(३७) श्रद्धावान जीवों को 'यह मेरा गुरु और यह पराया गुरु'-ऐसा भेद गुरु - 05 के विषय में कदापि नहीं होता। जिनवचन रूपी रत्नों के आभूषणों से जो . AK मंडित होते हैं वे सब ही उनके लिए गुरु हैं । ।१०५।। SWE (३८) मिथ्यात्व रहित सम्यक्त्वादि धर्मबुद्धि उल्लसित करने की यदि तुम्हारी र 00 इच्छा हो तो साधर्मी विशेष ज्ञानियों की संगति करो क्योंकि संगति ही से 00
WA गुण-दोषों की प्राप्ति देखी जाती है।।१०६ ।। GO (३९) निग्रंथ गुरु का उपदेश होते हुए भी कई जीवों के सम्यक्त्व उल्लसित
नहीं होता अथवा सूर्य का तेज उल्लुओं के अंधत्व को कैसे हर सकता है 5 अर्थात् नहीं हर सकता ।।१०८ ।। 7 (४०) जिनके नष्ट हुए पदार्थों का शोक आदि नहीं है ऐसे ज्ञानी सम्यग्दृष्टि SNIVE जीवों की आज दुर्लभता है।।११२ ।। 00 (४१) ऐसे जीवों की मूर्खता देखकर ज्ञानी सम्यग्दृष्टियों को करुणा उत्पन्न ७० AMB होती है जो व्रतादि का नाम लेकर रात्रिभोजनादि तथा धर्म का नाम लेकर No हिंसा पाप करते हैं।।११४।।
Ma (४२) ऐसे जीव होने दुर्लभ हैं जो जिनवचनों के ज्ञान से संसार से भयभीत - 25 होते हुए सम्यक्त्व का शक्ति सहित पालन करते हैं तथा अनेक खोटे कारण है
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