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सच्चे गुरु का मिलना सहज
नहीं है।
मिलते हैं। से शुद्ध गुरु पुण्य के उदय
वीतरागता के पोषक जिनवचनों को जान करके भी जब संसार से उदासीनता नहीं होती तो फिर जिनवचनों को बिना जाने मिथ्यात्व के द्वारा हते हुए जो कुगुरु उनके निकट वह उदासीनता कैसे होगी !
सुगुरु व कुगुरु ही सम्यक्त्व-मिथ्यात्व के मूल कारण है।
कुगुरुओं का प्रसग कभी भी न करना।
शुद्ध गुरु के उपदेश से सम्यक श्रद्धान होता है।
कुगुरु के निकट वैराग्य नहीं हो
सकता।
ANIMAVIMAN कुगुरुओं का संयोग जीवों को कभी मत होओ।
कुगुरु
अविवेकी और दुष्ट होता है।
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सर्प से भी अधिक दुःखदायी कुगुरु है परन्तु सर्प को त्यागने वाले को तो सब भला कहते हैं और कुगुरु को त्यागने वाले जीवों को मूर्ख जीव निगुरा और दुष्ट कहते हैंयह अत्यन्त ही खेद की बात है।
जिनराज की आज्ञा है कि कुगुरु का सेवन मत करो।
कुगुरु सेवन की
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अपेक्षा सर्प का सेवन भला है।