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जिसके आत्मज्ञान हुआ है वह वीतराग सुख का अभिलाषी है इसलिए वह सच्चा धनवान है परन्तु अज्ञानी परद्रव्य की हानि - वृद्धि सदा आि है इसलिए दरिद्र ही है।
मोक्ष में यह जीव सदैव ही अविनाशी सुख भोगता
है।
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धर्म के अंगों का सेवन करने में अपनी ख्याति-लाभ-पूजा
का आशय न रखना ।
यदि संसार में सुख होता तो तीर्थंकरादि बड़े पुरुष उसे क्यों त्यागते अतः ज्ञात होता है कि संसार में महा दुःख है।