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गाथ ११८
जिन जीवों के अपना आत्मा ही वैरी है अर्थात् जो मिथ्यात्व
मिथ्यात्व
मैं एक राजा हूँ और मैंने
अपने पराक्रम से खोए हुए राज्य पर अधिकार
प्राप्त किया है
और
क्रोध
|मान
माया
लोभ
कषायों द्वारा अपना घात स्वयं ही करते हैं
उन्हें अन्य जीवों पर करुणा कैसे हो सकती है अर्थात् नहीं हो सकती।
जो स्वयं घोर बंदीखाने में पड़ा हो वह दूसरों को छुड़ा कर कैसे सुखी कर सकता है
अर्थात् नहीं कर सकता।