________________
गाथ ११६
जिस प्रकार
प्रकटपने सर्व अंगों के विद्यमान होने पर भी एक धुरी बिना गाड़ी नहीं चलती
उसी प्रकार सम्यक्त्व के बिना धर्म का बड़ा आडंबर भी फलीभूत नहीं होता इसलिये व्रतादि धर्म सम्यक्त्व सहित ही धारण करना योग्य है - यह तात्पर्य है ।
१४१