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गाथा ५३
शास्त्राभ्यास आदि भला आचरण करने वाले जीवों को जो पुरुष सदाकाल धर्म का आधार देता है
और
यह स्वाध्यायभवन
आप सदृश आत्म-हितार्थियों को समर्पित है।
उनका निर्विघ्न शास्त्राभ्यास आदि होता रहे ऐसी सामग्री का
मेल मिलाता है
कल्पवृक्ष
चिन्तामणि रत्न
उस पुरुष का मूल्यांकन कल्पवृक्ष अथवा चिंतामणि रत्न
से भी नहीं हो सकता है अर्थात् वह पुरुष उनसे भी महान है।