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गाथा ४४
जिस जीव के ये लक्षण हैं
वह मिथ्यादृष्टि है :
१. धर्म में तो माया-छल है अर्थात जो कुछ धर्म के अंग का सेवन करता है उसमें अपनी ख्याति, लाभ-पूजादि का आशय रखता है;
२. गाथा-सूत्रों का अर्थ मिथ्या मानता है अर्थात उनका यथार्थ अभिप्राय तो जानता नहीं उल्टे मिथ्या अर्थ ग्रहण करता है;
३. उत्सूत्र अर्थात् सूत्र के अतिरिक्त बोलने में ।
जिसे शंका नहीं होती, यद्वा-तद्वा कहता है;
४.गुरु को पक्षपातवश सुगुरु बतलाता है।
तथा ५. पाप रूप दिवस को पुण्य
रूप मानता है।
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